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सप्तमोऽध्यायः
नीलकमल, वैडूर्य और पद्मकेसर के समान कान्तियुक्त, वायुरहित सन्ध्या सूर्य की किरणों को प्रकाशित करे तो घोर वर्षा होती है । इस प्रकार की सन्ध्या का फल तीन दिनों में प्राप्त हो जाता है । यदि सन्ध्या समय गन्धर्वनगर, कुहासा और धूम छाये हुए दिखलाई पड़े तो वर्षा की कमी होती है । सन्ध्याकाल में शस्त्र धारण किए हुए नर रूपधारी के समान मेघ सूर्य के सम्मुख छिन्न-भिन्न हों तो शत्रुभय होता है । शुक्लवर्ण और शुक्ल किनारे वाले मेघ सन्ध्या समय में सूर्य को आच्छादित करें तो वर्षा होने का योग समझना चाहिए। सूर्य के उदयकाल में शुक्ल वर्ण की परिधि दिखलाई दे तो राजा को विपद् होती है, रक्तवर्ण हो तो सेना की और कनकवर्ण की हो तो बल और पुरुषार्थ की वृद्धि होती है । प्रातः कालीन सन्ध्या के समय सूर्य के दोनों ओर की परिधि, यदि शरीर वाली हो जाय तो बहुत जल-वृष्टि होती है और सब परिधि दिशाओं को घेर ले तो जल का कण भी नहीं बरसता । सन्ध्या काल में मेघ, ध्वज, छत्र, पर्वत, हस्ती और घोड़े का रूप धारण करें तो जय का कारण हैं और रक्त के समान लाल हों तो युद्ध का कारण होते हैं । पलाल के धुएँ के समान स्निग्ध मूर्तिधारी मेघ राजाओं के बल को बढ़ाते हैं । सन्ध्या काल में सूर्य का प्रकाश यदि तीक्ष्ण आकार हो या नीचे की ओर झुके आकार का हो तो मंगल होता है । सूर्य के सम्मुख होकर पक्षी, गीदड़ और मृग सन्ध्याकाल में शब्द करें तो सुभिक्ष का नाश होता है, प्रजा में आपस में संघर्ष होता है और अनेक प्रकार से देश में कलह एवं उपद्रव होते हैं ।
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यदि सूर्योदय काल में दिशाएँ पीत, हरित और चित्र-विचित्र वर्ण की मालूम हों तो सात दिन में प्रजा में भयंकर रोग, नील वर्ण की मालूम हों तो समय पर वर्षा और कृष्ण वर्ण की मालूम हों तो बालकों में रोग फैलता है । यदि सायंकाली सन्ध्या के समय दक्षिण दिशा से मेघ आते हुए दिखलाई पड़ें तो आठ दिनों तक वर्षाभाव, पश्चिम दिशा से आते हुए मालूम पड़ें तो पाँच दिनों का वर्षाभाव, उत्तर दिशा से आते हुए मालूम पड़ें तो खूब वर्षा और पूर्व दिशा से आते हुए मेघ गर्जन सहित दिखलाई पड़ें तो आठ दिनों तक घनघोर वर्षा होने की सूचना मिलती है । प्रातःकालीन और सायंकालीन सन्ध्याओं के वर्ण एक समान हों तो एक महीने तक मशाला और तिलहन का भाव सस्ता, सुवर्ण और चाँदी का भाव महँगा तथा वर्ण परिवर्तन हो तो सभी प्रकार की वस्तुओं के भाव नीचे गिर जाते हैं ।
ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा की प्रातःकालीन सन्ध्या श्वेत वर्ण की हो तो आषाढ़ में श्रेष्ठ वर्षा, लाल वर्ण की हो तो आषाढ़ में वर्षा का अभाव और श्रावण में स्वल्प वर्षा, पीत वर्ण की हो तो भी आषाढ़ में समयोचित वर्षा एवं विचित्र वर्ण की हो तो आगामी वर्षा ऋतु में सामान्य रूप से अच्छी वर्षा होती है । उक्त तिथि को