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________________ सम्यक् आचरण नहीं कर पाता है, वह श्रावकधर्म के पालन में असमर्थता का अनुभव करता है। प्रत्याख्यानी कषाय की उपस्थिति में मुनिधर्म का पालन और संज्वलन कषाय के कारण वीतरागता की उपलब्धि सम्भव नहीं है। अतः बन्धन से मुक्ति के लिए कषायों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। उपर्युक्त कषायों के विभिन्न रूपों में मूल में दो ही प्रमुख तत्त्व हैं राग और द्वेष । उत्तराध्ययनसूत्र (32.7) में कहा गया है कि 'रागो य दोसो य बीय कम्मबीयं' अर्थात् राग और द्वेष ये दो कर्म के बीज हैं। इन दोनों में द्वेष का हेतु राग और राग का हेतु मोह है। मोह और राग का सम्बन्ध ठीक वैसा ही है जैसा मुर्गी और अण्डे का सम्बन्ध । इनमें से किसी की पूर्वकोटि का निर्धारण संभव नहीं है। सत्य यह है कि जहाँ राग (ममत्व बुद्धि) होता है, वहाँ मोह होता है और जहाँ मोह होता है वहाँ राग होता है। यदि इस प्रक्रिया को और थोड़ा व्यापक रूप से समझने का प्रयत्न करें तो इसे इस प्रकार कह सकते हैं। मोह, मोह से राग, राग से द्वेष, राग-द्वेष से कषाय और कषाय से बन्ध और बन्ध से मोह। इस प्रकार एक चक्र निर्मित होता है। इस चक्र का भेदन मोह के भेदन से ही संभव है। मोह का तात्पर्य है, पर पदार्थों पर स्व का आरोपण अथवा अनात्म पर आत्म का आरोपण । जो अपना नहीं है उसे अपना मानना यही मोह है, इसी मोह से राग का प्रादुर्भाव होता है। जहाँ राग होता है वहाँ अव्यक्त रूप से द्वेष की सत्ता अवश्य रहती है राग के विषय के प्रतिकू. तत्त्व द्वेष का विषय बनते हैं। जहाँ राग-द्वेष होते हैं, वहाँ नियम से क्रोध, मान, माया और लोभ की सत्ता होती है और जहाँ क्रोध, मान, माया और लोभ की सत्ता होती है, वहाँ बन्ध होता है। इसलिए बन्ध का मूल हेतु तो मोहजन्य राग ही है। उत्तराध्ययनसूत्र (32.8) में कहा गया है कि उसी का दुःख समाप्त होता है जिसे मोह नहीं होता है। जिसका मोह समाप्त हो जाता है उसे तृष्णा नहीं होती है। जिसे तुष्णा नहीं होती उसे लोभ नहीं होता और जिसे लोभ नहीं होता उसे कोई चाह नहीं होती और जहाँ चाह का अभाव है वहीं दुःख का अभाव है। अतः दुःख-विमुक्ति के लिए मोह-विमुक्ति आवश्यक है। चूंकि मोह के निमित्त से राग अर्थात् पर को अपना मानने की प्रवृत्ति होती है। अतः बन्धन से विमुक्ति का मुख्य आधार तो वीतरागता का अभाव है। उत्तराध्ययनसूत्र (32.19) में यह भी कहा गया है कि विषयभोंगो में XLIX भूमिका
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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