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________________ आदि के द्वारा नीचगोत्र का वेदन होता है। इस तरह जातिविहीनता आठ प्रकार का नीच गोत्र का अनुभाव (फल) कहा गया है। गोत्रकर्म का सम्बन्ध बाह्य पदार्थों से नहीं बल, रूप, ऐश्वर्य, लाभ आदि आठों बातें व्यावहारिक एवं बाह्य दृष्टि से बाह्य सामग्री के रूप में तथा आभ्यन्तरिक दृष्टि से भाववाचक व गुणवाचक हैं, कारण कि ये जीव विपाकी प्रकृतियाँ हैं, अतः इनका सम्बन्ध भावात्मक है बाह्य पदार्थ नहीं। कर्म-सिद्धान्त में आभ्यन्तरिक दृष्टि को ही प्रधानता दी गयी है, बाह्य दृष्टि को नहीं । उदाहरणार्थ यदि शारीरिक बल को उच्च गोत्र के उदय का फल माना जाय तो शेर, चीता, हाथी, घोड़े आदि शरीर से बलवान तिर्यंच जीवों के उच्च गोत्र का उदय मानना होगा। इसी प्रकार शारीरिक रूप को उच्च गोत्र का उदय माना जाय तो तोता, मयूर आदि पक्षियों के उच्च गोत्र का उदय मानना होगा जो कर्म सिद्धान्त के अनुकूल नहीं है। कारण कि समस्त तिर्यंच जीवों के नियम से नीच गोत्र का उदय कहा गया है। इसके अतिरिक्त नार्वे, स्वीडन, मंगोलिया, मंचूरिया, टुंड्रा आदि देशों के गौरवर्ण वाले सुन्दर पुरुषों, सुन्दर वेश्याओं, अन्य सुन्दर नारियों एवं दस्यु सुन्दरियों में उच्च गोत्र का उदय मानना होगा और अफ्रीका व दक्षिण भारत के काले व्यक्तियों में नीच गोत्र का उदय मानना होगा, चाहे वे गुणसम्पन्न हों। इसी प्रकार ऐश्वर्य सम्पन्न, धनवान, भूपतियों के उच्च गोत्र का उदय मानना होगा चाहे वे दुराचारी ही हों और निर्धन, गरीब, अभावग्रस्त समस्त मनुष्यों के नीचगोत्र का उदय मानना होगा भले ही वे कितने ही सज्जन व सदाचारी हों। अतः यह मान्यता कर्म सिद्धान्त के विपरीत है। जो व्यक्ति बलहीन हैं, कमजोर हैं, कुरूप हैं, अथवा जो निर्धन हैं अर्थात ऐश्वर्यहीन हैं अथवा जो अभावग्रस्त हैं अर्थात् लाभहीन हैं, इन सबके नीच गोत्र का उदय मानना होगा, फलस्वरूप इन्हें साधु बनने के अयोग्य एवं अनधिकारी मानना होगा, क्योंकि साधु बनने का वही अधिकारी होता है जो उच्च गोत्रीय हो अर्थात् जो बलवान हो, रूपवान हो, ऐश्वर्य सम्पन्न हो। बल, रूप आदि आठों में से किसी एक की भी कमी हुई तो वह साधु बनने का पात्र नहीं होगा, क्योंकि उसके नीच गोत्र का उदय मानना होगा, जो उचित नहीं है। अतः बाह्य पदार्थों एवं परिस्थिति की प्राप्ति-अप्राप्ति गोत्र कर्म का आधार नहीं है। गोत्र कर्म 197
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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