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________________ बैक्टीरिया, वायरस आदि कीटाणुनाशक, प्रतिरोधात्मक शक्ति इम्यूनिटी पावर को पराघात मानना अधिक उपयुक्त लगता है। कारण कि असंख्य प्रकार के बैक्टीरिया आदि कीटाणुओं का शरीर पर निरन्तर आक्रमण होता रहता है और प्रतिरोधात्मक शक्ति प्रत्याक्रमण कर उन पर विजय प्राप्त करती रहती है। पराघात प्रकृति उसे कहते हैं, जिससे पर अर्थात् दूसरे का घात हो, दूसरे पर विजय प्राप्त हो । यह पुद्गल विपाकी प्रकृति है, इसलिये इसका सम्बन्ध शरीर से है, शरीर में आने वाले दूषित पदार्थ, दूषित वायु विकार उत्पन्न करने वाले पदार्थ और संक्रामक या साधारण ज्वर - जुकाम आदि बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु शरीर में बाहरी वातावरण से आकर हमला करते हैं- इसलिये सबको पर कहा जाता है । परन्तु हमारे शरीर में रक्त के श्वेतकण आदि ऐसे तत्त्व हैं जो इन बाह्य विकारों या शरीर में होने वाले विकारों से युद्धकर इनको पराजित करते रहते हैं। पर को आघात पहुँचाने वाली यही प्रकृति पराघात कहलाती है। पराघात प्रकृति के उदय से जीव शरीर की दृष्टि से शक्तिशाली होता है। वह अनेक प्रकार की परिस्थितियों का सामान्य रूप से सामना कर सकता है। प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी के शरीर में एक ऐसी प्रक्रिया की व्यवस्था की है जो विजातीय पदार्थ के प्रभाव से उसे सुरक्षित रखती है। यह निष्प्रभावन तंत्र पराघात नामकर्म है, जो पर के आघात व आक्रमण को प्रभावहीन बनाने का कार्य करता है । यह पुण्य प्रकृति है । जीव जिस संसार में रहते हैं, उसके वातावरण में विषाणु, जीवाणु, कीटाणु आदि ऐसे जीव भरे पड़े हैं जो प्राणी के शरीर पर आक्रमण करके उसे अपना आहार बनाना चाहते हैं । डाक्टरों का कथन है कि हैजे के, मोतीझरे के, राजयक्ष्मा आदि रोगों के कीटाणु प्रायः सभी जगह न्यूनाधिक रूप में पाये जाते हैं और अनजाने ही प्राणी के शरीर में प्रवेश कर उस शरीर को आहार व निवास स्थान बनाकर अपनी आबादी बढाना चाहते हैं । ये एक दिन में इतने बढ़ जाते हैं कि एक जीव से करोड़ों जीवों की उत्पत्ति हो सकती है। ये कीटाणु आदि विजातीय तत्त्व श्वास, भोजन, स्पर्श आदि के द्वारा हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं। परन्तु हमारे शरीर में रक्त के श्वेताणु आदि ऐसे तत्त्व हैं जो इनके साथ युद्धकर इनको पराजित कर नाम कर्म 173
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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