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________________ शाखाओं के जैसे लंबे-लंबे कितने ही मुख होते हैं और उनमें हिलने की शक्ति भी बहुत होती है, परन्तु चलने की शक्ति अत्यल्प होती है । चलने की गति इतनी कम होती है कि वे चलते हुए भी दिखाई नहीं देते हैं । ऐसा लगता है जैसे एक ही स्थान पर पौधे की तरह स्थिर हों। जब स्पर्शनेन्द्रिय का और अधिक विकास होता है तो वस्तुओं से निकले हुए सूक्ष्म पदार्थ जिसे गंध कहा जाता है उसे भी संवेदन करने व पहचानने की शक्ति आ जाती है। इसे ही घ्राणेन्द्रिय कहा जाता है । रसनेन्द्रिय में तो स्पर्श होने पर पदार्थों को स्थूल रूप में पहचानने एवं संवेदन करने की शक्ति होती है, परन्तु घ्राणेन्द्रिय में उससे भी सूक्ष्म पदार्थ गंध के स्पर्शन का संवेदन होता है व पहचाना जाता है । जब स्पर्शनेन्द्रिय की शक्ति और भी अधिक विकसित होती है तो गंध से अति सूक्ष्म पदार्थ प्रकाश का संवेदन करने की व पहचानने की शक्ति आ जाती है, इस शक्ति व इसके माध्यम (स्थान) को ही चक्षुइन्द्रिय कहा जाता है। जब स्पर्शनेन्द्रिय की शक्ति और भी अधिक विकसित होती है तो वह तरंग रूप पदार्थ ध्वनि को संवेदन करने व पहचानने लगती है। इस शक्ति के स्थान को ही कर्णेन्द्रिय कहा जाता है । चक्षुइन्द्रिय जिस पदार्थ का संवेदन करती है वह दृश्यमान होता है, परन्तु कर्णेन्द्रिय जिस पदार्थ का संवेदन करती है वह अदृश्यमान पदार्थ होता है। इसीलिए चक्षुइन्द्रिय से कर्णेन्द्रिय को अधिक विकसित माना है। डार्विन का विकासवाद का सिद्धान्त भी इन्द्रियों के इस विकास क्रम के सिद्धान्त को पूरी तरह पुष्ट करता है । परन्तु डार्विन ने अपने सिद्धान्त का आधार केवल जीवन की बाहरी क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं रूप प्रक्रिया को ही बनाया। जीवन के आंतरिक विकास के साथ उसका सम्बन्ध नहीं जोड़ां अतः डार्विन का विकासवाद का सिद्धान्त एकांगी व अधूरा है, उसमें अनेक विसंगतियां आ गई हैं। आत्मा की आंतरिक स्थिति के अनुरूप ही हमारे शरीर, इन्द्रिय आदि बाहरी स्थिति व परिस्थिति का निर्माण होता है। इसमें आंतरिक स्थिति कारण रूप है तथा बाहरी स्थिति कार्य रूप है। अतः बाहरी स्थिति से आंतरिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। आंतरिक स्थिति की द्योतक है । क्योंकि बाहरी स्थिति 160 नाम कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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