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________________ (1) ज्ञानावरणीय : जो ज्ञान का, विवेक का आवरण करे, वह ज्ञानावरणीय है। आवरण उसी पर होता है, जो वस्तु मौजूद है। शरीर आदि जो वस्तुएँ उत्पन्न हुई हैं उनका व्यय या विनाश अवश्यम्भावी है। इसी प्रकार इन्द्रिय सुख, विषय सुख क्षणिक हैं, अस्थायी हैं। हमें विनाशी वस्तु या क्षणिक सुख नहीं चाहिए, अपितु अविनाशी तत्त्व, स्थायी(शाश्वत), अक्षय, स्वाधीन सुख चाहिए, यह माँग सभी की है, जिसकी पूर्ति विनाशी के त्याग से तथा विषय सुख के त्याग से ही सम्भव है। यह ज्ञान सभी को है, यह निज ज्ञान है, आत्म-ज्ञान है। फिर भी हम क्षणिक सुख के नशे के मोह में मूर्च्छित होकर इस ज्ञान के अनुरूप आचरण नहीं करते। इस ज्ञान का अनादर, उपेक्षा करते हैं, फलतः इस ज्ञान का प्रभाव (प्रकाश) हमारे पर प्रकट नहीं होता, जिससे प्राणी विनाशी वस्तुओं के भोगों में गृद्ध रहता है। इस प्रकार कषाययुक्त वह प्रवृत्ति जिससे जानने की शक्ति रूप ज्ञान का प्रकाशन न हो, आवृत्त रहे वह ज्ञानावरणीय कर्म है। इस कर्म की मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान पर आवरण रूप पाँच प्रकृतियाँ हैं। (2) दर्शनावरणीय : स्व-संवेदन को अर्थात् निजचेतना के अनुभव को दर्शन कहते हैं। विषय- भोग के मोह व आसक्ति से जड़ता आती है, जिससे स्वसंवेदन रूप निज चेतना की शक्ति (अनुभव) प्रकट नहीं होती है, आवरित हो जाती है, इसे ही दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं। इसकी पाँच निद्रा एवं चार दर्शन पर आवरण रूप नौ प्रकृतियाँ हैं। (3) वेदनीय : वह कर्म जिससे साता-असाता (सुख-दुःख) का वेदन (अनुभव) हो, वेदनीय कर्म है। जो संवेदना प्रकट होती है उसमें अनुकूल संवेदना का साता के रूप में और प्रतिकल संवेदना का असाता के रूप में वेदन (अनुभव) करना, ये वेदनीय कर्म के साता–असाता रूप दो भेद हैं। (4) मोहनीय : जिस मान्यता एवं प्रवृत्ति से इन्द्रियों के विषय भोगों में गृद्ध व मोहित (मूर्छित) हो अपने अविनाशी, निर्विकार, परमानन्द स्वरूप का भान भूले, उससे विमुख हो, वह मोहनीय कर्म है। इसकी अनंतानुबंधी क्रोध, मान आदि 28 प्रकृतियाँ हैं। ___(5) आयुष्य : आसुरी, पाशविक, मानवीय आदि प्रकृतियों का दृढ़तम होकर स्थायी रूप ले लेना फिर उसी प्रकार का शरीर व भव धारण करना आयु कर्म है। इसकी तिर्यच, मनुष्य, देव और नरक ये चार प्रकृतियाँ हैं। XXII प्राक्कथन
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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