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________________ संयमित व नियमित आहार-विहार पर निर्भर करती है। विषय भोग से प्राण शक्ति का ह्रास होता है और भोग न करने से, विश्रान्ति से, शान्त रहने से प्राण शक्ति में अर्थात् जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है जिससे आयु के स्थितिबंध में वृद्धि होती है। अतः तिर्यंच, मनुष्य और देव इन तीन शुभआयुओं का स्थितिबंध शुभ भाव से होता है अतः शुभ है, किन्तु शेष समस्त कर्म प्रकृतियों का स्थिति बंध उनके साथ रही हुई फलासक्ति व कषाय से होता है। अतः अशुभ है। आयु का सम्बन्ध शरीर की सक्रियता से है। शरीर तभी तक सक्रिय रहता है, जब तक उसमें जीवनी शक्ति है। वह जीवनी-शक्ति ही आयुबल प्राण है। शरीर की यह जीवनी शक्ति आहार पर निर्भर करती है। आहार के अभाव में शरीर अधिक काल तक टिक नहीं सकता है। इसीलिए आहार को आयुकर्म का नोकर्म (निमित्त) कहा है। यथाणिस्यायुस्य अणिट्ठालरो ओयाणमिट्ठमण्णादी।। - गोम्मटसार कर्मकाण्ड 78 अर्थात् अनिष्ट आहार नरकायु का नोकर्म है और शेषायु (तिर्यंच-मनुष्य-देव आयुओं) का मधुर अन्न आदि नोकर्म है। आहार से अभिप्राय यहाँ रसनेन्द्रिय का आहार भोजन तो है ही, साथ ही चक्षु, श्रोत्र आदि शेष इन्द्रियों के विषयों को भी लिया जा सकता है। इन विषयों का उपयोग भोगवृत्ति एवं दुष्प्रवृत्ति में करना अशुभ आहार है। जो आसुरी प्रवृत्तियों को बढ़ाने वाला एवं नारकीय जीवन उत्पन्न करने वाला है। इसके विपरीत इनके प्रति विरति भाव, उदासीनता, समतारूप शुभ-मधुर आहार है जो मानवीय व दिव्य वृत्तियों को उत्पन्न करने वाला है एवं जीवनी-शक्ति बढ़ाने वाला है। आयुर्वेद शास्त्र मुख्यतः आयु से ही सम्बन्ध रखता है उसमें अनिष्ट आहार-औषध-भेषज को रोगवर्द्धक व आयु क्षय का कारण कहा है और इष्ट-शुभ आहारादि को आयुवर्द्धक कहा अशुभ आहार इन्द्रियों व मन की भोग प्रवृत्ति अविरति, दुष्प्रवृत्ति एवं दुर्व्यसन का सूचक है जो जीवनी-शक्ति का ह्रास करता है तथा विरति, इन्द्रिय-संयम शुभ आहार है जिससे जीवनी शक्ति बढ़ती है। अतः संयम से तिर्यंच, मनुष्य और देव इनकी आयु की स्थिति में वृद्धि होती है। आयु कर्म 149
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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