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________________ गालियां देगा। सोहन को भी जब-जब याद आयेगी तो उसमें भी द्वेष आयेगा, वह भी दुःखी होगा और मन में गालियां देगा। इस प्रकार एक गाली के बदले अनेक बार दुःख व गालियाँ मिलेंगी । इसके विपरीत किसी ने अनुकंपा कर किसी दुःखी व्यक्ति को दान देकर सेवा कर उसका दुःख दूर किया तो दान देने और लेने वाले दोनों को उस समय भी प्रसन्नता या सुख का अनुभव होगा और आगे भी उन दोनों को जब-जब उसकी स्मृति आयेगी या वे मिलेंगे तब-तब प्रसन्नता ही प्रकट होगी । संयम से निर्विकारता - आरोग्य-स्वस्थता का, क्षान्ति से शान्ति का एवं शौच (निर्लोभता - निर्मोहता ) से स्वाधीनता - मुक्ति का सुख मिलता है जो चित्त को आह्लादित करने वाला होता है । प्राणी की अन्तर - आत्मा में अंकित प्रभाव दो प्रकार से प्रकट होता है यथा- प्रथम इष्ट परिस्थिति एवं इष्ट वस्तु का संयोग मिलने से कामना पूर्ति के रूप में- जिससे प्राणी को साता अर्थात् अनुकूलता का अनुभव होता है- सुख का वेदन होता है। दूसरा इष्ट वस्तु या परिस्थिति का संयोग न मिलने पर वह अंतर में अंकित तथा दबा हुआ प्रभाव कुंठा बनकर रोग के रूप में प्रकट होता है । वह रोग शारीरिक भी हो सकता है तथा मानसिक भी हो सकता है। इससे दुःख या असाता का अनुभव होता है अर्थात् प्रतिकूलता के दुःख का वेदन होता है । साता-असाता के वेदन रूप में वेदनीय कर्म के उदय द्वारा प्राणी के अन्तर में अंकित कर्म - प्रभाव को बाहर प्रकट कर उस कर्म को निर्जरित करने का यह प्राकृतिक उपाय है। यह कर्म-ग्रंथियों का क्षय करने वाला होने से प्राणी के लिए हितकर है और भवरोग के क्षय का प्राकृतिक उपाय है। परन्तु इस तथ्य को नहीं समझने से प्राणी साता रूप अनुकूल वेदन को तो पसंद करता है और रोग आदि असाता रूप वेदन को पसंद नहीं करता है। यही नहीं प्राणी साता को पसंद करके उससे राग करता है और असाता के वेदन को नापसंद करके उससे द्वेष करता है। इस प्रकार प्राकृतिक विधान से जो साता - असाता का वेदन कर्म-क्षय के लिए प्रकट हुआ था, निर्जरित होने के लिए उदय हुआ था, उसके प्रति राग-द्वेष करके जीव नवीन प्रभाव अंकित कर लेता है, नवीन कर्म का बंध कर लेता है, जो वेदनीय कर्म 99
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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