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________________ सुख व भोग की सामग्री अगणित है। यदि कोई उन वस्तुओं को पाने की कामनाएँ करने लगे, तो मस्तिष्क इतना अधिक अशान्त हो जायेगा कि उसके मस्तिष्क की कोई भी स्नायु फटकर रक्तस्राव (हेमरेज) हो सकता है, जिससे लकवा, पागलपन या मृत्यु भी हो सकती है। जहाँ विकल्प है, संकल्प है, कामना है; वहाँ अशान्ति है। निर्विकल्पता में ही शान्ति है, प्रसन्नता है। वस्तुतः महत्त्व निर्विकल्प बोध का है। उसकी उपलब्धि कामना पूर्ति के सुख में दुःख का अनुभव करने से होती है। जब सत्य के खोजी को इसका ज्ञान होता है कि कामनापूर्ति का सुख, सुख नहीं है, सुखाभास है, पराधीनता, जड़ता में आबद्ध करने वाला है, अभाव के दुःख एवं चित्त की अशान्ति को उत्पन्न करने वाला है, क्षणिक है, शक्ति का ह्रास करने वाला है, तब उसे इस सच्चाई का ज्ञान होता है कि दुःख का कारण कमी नहीं है, कामना है। सुख, कामना पूर्ति में नहीं, कामना के अभाव में है। सुख, शान्ति, स्वाधीनता की प्राप्ति कामनापूर्ति में नहीं, कामना के त्याग में है। सुख के भोगी को दुःख भोगना ही पड़ता है। संसार का ऐसा कोई दुःख नहीं है, जिसका कारण कामना पूर्ति के सुख का भोग न हो। इन तथ्यों का जब अनुभव के स्तर पर बोध होता है, तब कामना के उत्पन्न होने से होने वाली अशान्ति का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। उसे उस विकल्प व अशान्ति का दुःख जब सहन नहीं होता है, तब साधक कामना की उत्पत्ति को दुःख का कारण अनुभव कर कामना का त्याग करने को तत्पर होता है, कामना न करने का दृढ़ निश्चय करता है। इससे सहज स्वतः निर्विकल्पता आती है। यह अनुभूति बाहरी कारणों से उत्पन्न न होकर अन्तर से प्रस्फुटित होती है। यह निर्विकल्पता, चिन्मयता, मुक्ति व स्वाधीनता को देने वाली है। इसमें साधक का सच्चा हित व कल्याण है। सुख भोग की कामना का त्याग ही सच्चा त्याग है, उसी का महत्त्व है। सभी व्यक्ति प्रतिदिन मल-मूत्र आदि का विसर्जन करते ही हैं। नोट-सिक्के आदि मुद्रा देकर वस्तुएँ खरीदते हैं। दुकान पर ग्राहक अधि कि आने पर भोजन छोड़ देते हैं। मृत्यु आने पर धन, संपत्ति, घर-परिवार, शरीर को छोड़ते हैं। परन्तु यह छोड़ना त्याग नहीं है। त्याग हैसुख-भोग को दुःखद जानकर भोग्य पदार्थों की कामना-ममता का त्याग दर्शनावरण कर्म 69
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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