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________________ का पालन करना ज्ञान का आदर है। अनित्य जानते हुए भी उसका त्याग न करना, अनित्य पदार्थों की कामना-ममता करना ज्ञान का अनादर है। अनादर ज्ञान की प्रभावहीनता का द्योतक है। यही ज्ञानावरणीय कर्म है। अतः वीतराग को छोड़कर जो संसार के समस्त अनन्तानंत प्राणी हैं, उनके ज्ञानावरणीय कर्म हर समय उदय होता एवं बंधता है। ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कर्मों का क्षयोपशम और परिणाम मोह की कमी से ज्ञान-दर्शन गुण का विकास होता है। परन्तु ज्ञान और दर्शन के न्यूनाधिक उपयोग से ज्ञान-दर्शन गुण न्यूनाधिक होते हों, ऐसा नहीं है। जैसे किसी भी इन्द्रिय के अधिक उपयोग करने से उस इन्द्रिय की शक्ति नहीं बढ़ जाती है या इन्द्रिय में कोई विशेषता आ जाती हो ऐसा नहीं है- उदाहरणार्थ हमने कान से अधिक संख्या में गाने सुने, शब्द सुने, कोलाहल सुना, शोर सुना, इससे कर्णेन्द्रिय का दर्शन-ज्ञान गुण व शक्ति बढ़ जाती हो, सो नहीं है, प्रत्युत घटती है। अतः इन्द्रिय का अधिक उपयोग व इन्द्रिय-विषयों की अधिक जानकारी या न्यून जानकारी से ज्ञान गुण में वृद्धि व न्यूनता होती हो, सो नहीं है। जैसे- किसी ने जोड़, बाकी, गुणा, भाग सीखा या इंजीनियरिंग विज्ञान सीखा (पढ़ा) अब वह उसका उपयोग जीवन में कर रहा है। इससे गिनती में व इंजीनियरिंग के ज्ञान में वृद्धि नहीं हो जाती है। यह नियम है कि दर्शनोपयोग के होने पर ही ज्ञानोपयोग होता है। अतः जहाँ जैसा ज्ञानोपयोग है वहाँ वैसा ही दर्शनोपयोग होता है। अतः जैसे ज्ञानोपयोग से ज्ञान गुण की वृद्धि नहीं होती वैसे ही दर्शनोपयोग से दर्शन गुण की वृद्धि भी नहीं होती है अर्थात् आकाश की ओर देखने से शून्य के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता। इससे दर्शन गण में कमी नहीं हो जाती और उस दृष्टि को आकाश से धरती की ओर फेरने पर हजारों वस्तुओं के दिखने से दर्शन गुण में वृद्धि नहीं हो जाती है, दर्शन गुण का विकास नहीं हो जाता। संसार में स्थित जितनी वस्तुएँ हैं उनका ज्ञान इन्द्रिय ज्ञान है और उन वस्तुओं की न्यूनाधिक जानकारी से इन्द्रिय ज्ञान (अज्ञान) की उपयोगिता में वृद्धि होती है। ज्ञान गुण में वृद्धि नहीं होती है। जैसे विद्युत शक्ति की प्रवाह-धारा के साथ बल्ब, पंखा, रेडियो, टेलीविजन लगा देने से या छोटा-बड़ा लगा देने से उपयोगिता बढ़ जाती है, परन्तु विद्युत के प्रवाह में वृद्धि-कमी नहीं ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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