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________________ उसे प्राकृतिक विधान से विवश हो दुःख भोगना ही पड़ता है। अतः विषय भोगों के सुखों को जो वस्तुतः सुखाभास है, सुख समझना मिथ्याज्ञान है। मिथ्याज्ञान ही अज्ञान है और पुरुषार्थ की कमी या प्रमाद से ज्ञान के अनुरूप आचरण न करना ही ज्ञानावरण है। आशय यह है कि अज्ञान का सम्बन्ध मिथ्यादर्शन से है और आवरण का सम्बन्ध तदनुरूप आचरण न करने से है। इसलिये दर्शन की विशुद्धि से, सम्यग्दर्शन से अज्ञान का नाश होता है और चारित्र की विशुद्धि से ज्ञान के आवरण का क्षय होता है। यहाँ यह जिज्ञासा उठना स्वाभाविक ही है कि आगम में जिस ज्ञान के अनादर को ज्ञानावरणीय-कर्म का हेतु कहा है, वह ज्ञान क्या है? तो कहना होगा कि आगम में स्वभाव के ज्ञान को, स्वाभाविक ज्ञान को ही ज्ञान कहा है। स्वभाव का ज्ञान व स्वाभाविक ज्ञान कभी नहीं बदलता है। सभी के सदा समान व एक-सा रहता है। जैसे किसी से पूछा जाय कि तुम्हें स्वाधीनता पसंद है या पराधीनता? तो सभी यही कहेंगे कि हमें स्वाधीनता पसन्द है। कोई भी यह नहीं कहेगा कि मुझे पराधीनता पसंद है। स्वाधीनता का यह ज्ञान सबको सहज, स्वतः प्राप्त है। यह ज्ञान किसी अन्य व्यक्ति के कथन व बुद्धि की देन नहीं है, क्योकि बुद्धि सभी की समान नहीं होती। अतः बुद्धिजन्य चिंतन, निर्णय, ज्ञान सभी का समान नहीं होता है और सभी व्यक्तियों का कथन भी समान नहीं होता है। अतः जिस ज्ञान में समानता है, नाम मात्र भी भेद व भिन्नता नहीं है वह ज्ञान, बुद्धि आदि परिवर्तनशील पदार्थों की देन नहीं है। वह ज्ञान अपरिवर्तनशील, नित्य, शाश्वत, सनातन, ध्रुव है। यह ज्ञान कभी न तो नष्ट होता है और न बदलता ही है। यह ज्ञान स्वभावजन्य होता है। स्वभावजन्य, स्वतः, सहज, अनायास होता है, स्वाभाविक व स्वयंसिद्ध होता है। स्वभाव के ज्ञान को, स्वाभाविक ज्ञान को ही विवेक व ज्ञान कहा जाता है। यह ज्ञान सबमें सदैव ज्यों का त्यों विद्यमान रहता है। अमरत्व (धुवत्व, अविनाशित्व), स्वाधीनता (मुक्ति), अक्षय-अखंड-अनन्त सभी को सदा-सर्वथा अभीष्ट है। फिर भी तन, मन, धन आदि विनाशी वस्तुओं से जुड़ना, पर-पदार्थों के आधीन (पराधीन) होना; क्षणिक सुख को चाहना, यह निज ज्ञान का, स्वाभाविक ज्ञान का अनादर करना है, यही ज्ञानावरण है। 50 ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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