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________________ है अथवा जो ज्ञान (अंतर्मुखी हो) पदार्थों को विषय करता है, वह अवधिज्ञान है। जब एकाग्र व शान्त चित्त से अंतर्मुखी हो शरीर के भीतर अन्तर में प्रवेश करते हुए आत्म-प्रदेशों से रूपी पदार्थों का अनुभव करता है, वह अवधि दर्शन है और उन्हें जानता है, वह अवधि ज्ञान है। तत्त्वार्थ सूत्र 1-9 सर्वार्थ सिद्धि टीका - अवाग्धानादवच्छिन्नविषयाद्वा अवधिः । अर्थ- नीचे के विषय को परिमित जानने वाला होने से इसे अवधिज्ञान कहते हैं। षट्खंडागम खंड 4 भाग 1 सूत्र 3 – यहाँ रूपी का अर्थ पुदगल नहीं समझना चाहिए बल्कि कर्म व शरीर में बद्धजीव द्रव्य व संयोगी भाव भी समझना चाहिए। षड्खंडागम खंड 5 भाग 5 सूत्र 52-53 अवधिज्ञान दो प्रकार का है1. भवप्रत्यय- यह नरक व देव भव में होता है। 2. सम्यक्त्व से अधिष्ठित अणुव्रत और महाव्रत गुण जिस अवधिज्ञान के कारण है, वह गुण प्रत्यय अवधिज्ञान है। 153 ।। षड्खंडागम खंड 5 भाग 5 सूत्र 57, 58, 59 धवला टीका पुस्तक 13, पृष्ठ 296 से 298 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भाग 1 पृष्ठ 192 जिस प्रकार शरीर और इन्द्रियों का प्रतिनियम आकार होता है, उस प्रकार अवधिज्ञान का नहीं होता है, किन्तु अवधिज्ञान क्षेत्र की अपेक्षा शरीर प्रदेश में अनेक संस्थान संस्थित होते हैं।। 57 || श्रीवत्स, कलश, शंख, साथिया (स्वस्तिक) और नंदावर्त आदि (अनेकानेक) आकार जानने योग्य हैं, चिह्नों का आकार नियत नहीं है।। 58 ।। प्रतिक्षण, प्रत्येक समय नया ज्ञान उत्पन्न होता है अर्थात् प्रतिक्षण अवधिज्ञान में परिवर्तन होता रहता है।। 59 ।। अवधिज्ञान श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना और स्पर्शन इन पाँचों इन्द्रियों एवं मन के माध्यम से नहीं होता है। अर्थात अवग्रह, ईहा, अवाय व धारणा रूप मतिज्ञान से नहीं होता है, अतः यह मतिज्ञान नहीं है। निजस्वरूप में संबंधित नहीं होने से यह श्रुतज्ञान भी नहीं है। क्योंकि इस अनुभव में हेय व उपादेय का बोध नहीं होता है, अतः यह श्रुतज्ञान भी नहीं है। फिर भी ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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