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________________ से मारती थी । 153 1 प्रथमो विलासः अथ धीराधीरप्रगल्भा धीराधीरगुणोपेता धीराधीरेति कथ्यते । (३) धीरा - अधीरा प्रगल्या- धीरा-अधीरा प्रगल्भा नायिका धीरा और अधीरा दोनों के मिश्रित गुणों से युक्त होती है ।। १०५ पू. ॥ यथा ममैव प्रत्यासीदति सागसि प्रियतमे सा सम्भ्रमादुत्थिता वैयात्यात् पुरतः स्थिते सति पुनर्मानावधूताशया । रात्रौ क्वासि न चेदियं मणिमयी माला कुतस्ते वदे त्युक्त्वा मेखलया हतेन सहसाश्लिष्टा सबाष्पं स्थिता 115411 [ ३९ ] जैसे शिङ्गभूपाल का (दूसरी नायिका के साथ सम्भोग करके) अपराध करने वाले प्रियतम को समीप में बैठ जाने पर विक्षोभ के कारण पलङ्ग से उठी हुई (नायिका) ने पुनः बहाने से उसको सामने खड़े हो जाने पर मान से अपमानित होने के कारण 'बोलो रात में कहाँ थे, यदि नहीं तो यह मणिजड़ित माला तुमको कहाँ से मिली' - इस प्रकार कहकर मेखला से मारे गये नायक से सहसा आश्लिष्ट तथा आँसू बहाती हुई खड़ी हो गयी । 154 ।। द्वेधा ज्येष्ठा कनिष्ठेति मध्या प्रौढापि तादृशी ।। १०५ ।। मध्या तथा प्रौढ़ा (प्रगल्भा) नायिकाएँ ज्येष्ठा तथा कनिष्ठा भेद से दो -दो प्रकार की होती है ।। १०५. । उभेsपि यथा ( अमरुशतके १९) - एकत्रासनसङ्गमे प्रियतमे पश्चादुपेत्यादरा देकस्या नयने पिधाय विहितक्रीडानुबन्धच्छलः । ईषद्वक्रितकन्धरः सपुलकः प्रेमोल्लसन्मानसा मन्तर्हासलसत्कपोलफलकां धूर्तोऽपरां चुम्बति 115511 दोनों जैसे (अमरुशतक 19 में ) - ( सखी नायक की चातुरी का वर्णन सखी से कर रही है ) एक ही आसन पर दो प्रियतमाओं को बैठी हुई देख कर उस धूर्त ने पीछे से जाकर एक प्रिया की आँखे मूँद दिया और बड़े आदर से क्रीडा के बहाने अपनी गरदन कुछ टेढ़ी करके रोमाञ्चित होकर वह दूसरी प्रिया के गालों को चूम रहा है जिसका मन प्रेम में प्रफुल्लित तथा कपोल हँसी से फड़क रहे हैं। 15511 अत्रेतरस्यां पश्यन्तामपि सम्भावनार्हतया पिहितलोचनायाः ज्येष्ठत्वम्, तत्र समक्षं
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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