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________________ [२०] रसार्णवसुधाकरः जैसे (रघुवंश १२।८ में) यह देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि राम के मुंह का भाव जैसा राज्याभिषेक के रेशमी वस्त्र पहनते समय था, ठीक वैसा ही वन जाने के लिए वल्कल वस्त्र पहनते समय भी था अर्थात् राम के मुख पर हर्ष या शोक का चिह्न न देखकर लोग आश्चर्यचकित हो गये।।17 ।। राज्याभिषेक तथा वनगमन दोनों में राम का प्रकृतिभाव (समभाव) से रहना उनकी गम्भीरता को द्योतित करता है। विनीतत्वं यथा (शिशुपालवधे १३.६) अवलोक एव नृपतेः स्म दूरतो रभसाद् रथादवतरीतुमिच्छतः । अवतीर्णवान् प्रथममात्मना हरि विनयं विशेषयति सम्भ्रमेण सः ।।18।। विनीतता जैसे (शिशुपालवध में) रथ से उतरने की इच्छा करते हुए राजा (युधिष्ठिर) को दूर से ही देखने पर हर्ष से भगवान् (कृष्ण) उनके (उतरने से) पहले ही (रथ से) उतर गये, इस प्रकार उस (कृष्ण) ने शीघ्रता (से उतरने) के कारण (अपने) विनयशीलता को विशिष्ट उत्कृष्ट बना दिया।।18 ।। सत्वसारवत्त्वं यथा (रामायणे १.१.६५) उत्स्मयित्वा महाबाहुः प्रेक्ष्य चास्थि महाबलः । पादाङ्गुष्ठेन चिक्षेप सम्पूर्ण दशयोजनम् ।।19।। उत्कृष्ट अन्तकरण वाला जैसे (रामायण १.१.६५) महाबाहु और महाबलशाली (राम) ने मुस्कराकर और उस अस्थि (हड्डियों के समूह) को एक बार देख कर (अपने) पैर के अङ्गूठे से (उछाल कर) उसे दश योजन दूर फेंक दिया।।19।। दृढव्रतत्वं यथा (रघुवंशे १२/१७) तमशक्यमपाक्रष्टुं निवेशात् स्वर्गिणः पितुः ।। ययाचे पादुके पश्चात्कर्तुं राज्याधिदेवते ।।20।। दढ़व्रती जैसे (रघुवंश १२.१७ में) राम जब अपने स्वर्गीय पिता की आज्ञा से टस से मस नहीं हुए तब भरत जी ने उनसे प्रार्थना की कि आप अपनी चरणपादुका मुझे दे दीजिए जिन्हें मैं आपके स्थान पर रखकर राज्य का काम चलाऊँ।।20।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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