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________________ प्रथमो विलासः [१९] उत्तमादि नायक- उपर्युक्त सभी गुणों से युक्त नायक उत्तम, कतिपय गुणों से हीन (नायक) मध्यम तथा अधिक गुणों से हीन नायक अधम नायक कहलाता है।।७१उ.-७२पू.।। नायक के भेद- ये नायक चार प्रकार के कहे गये हैं- १. धीरोदात्त, २. धीरललित, ३. धीरप्रशान्त तथा ४. धीरोद्धत। तत्र धीरोदत्तः दयावानतिगम्भीरो विनीतः सत्त्वसारवान् ।।७३।। दृढ़व्रतस्तितिक्षावानात्मश्लाघापराङ्मुखः । निगूढाहङ्कतिधीरैर्धीरोदात्त उदाहृतः ।।७४।। तत्र दयावत्त्वम्___ द्ययातिशयशालित्वं दयावत्वमुदाहृतम् । तत्र दयावत्वं यथा (रघुवंशे ६.६५) सशोणितैस्तेन शिलीमुखाग्रैनिक्षेपिताः केतुषु पार्थिवानाम् । यशो हृतं सम्प्रति राघवेण न जीवितं वः कृपयेति वर्णाः ।।16।। १. धीरोदात्त (नायक)- दयावान् , अतिगम्भीर, विनीत, उत्कृष्ट अन्त:करण वाला, दृढ़व्रती, सहिष्णु, आत्मप्रशंसा से विमुख, नम्रता के कारण छिपे हुए गर्व वाला (निगूढाहंकार) नायक धीरोदात्त कहलाता है।।७४।। दायावान् जैसे (रघुवंश ६.६५में) उन मूर्छित पड़े हुए राजाओं की पताकाओं पर रुधिर से लिप्त बाणों के अग्रभाग से अज ने यह लिखवा दिया कि हे राजाओं! इस समय रघुपुत्र अज ने आप लोगों के यश को तो ले लिया किन्तु दया करके प्राण नहीं लिया।।16।। इसमें शत्रुओं के प्रति अज की दया का उदात्त चित्रण हुआ है। अतिगम्भीरता गाम्भीर्यमविकारः स्यात् सत्यपि क्षोभकारणे।।७५।। यथा (रघुवंशे १२१८) दधतो मङ्गलक्षौमे वसानस्य च वल्कले । ददृशुर्विस्मितास्तस्य मुखरागं समं जनाः ।।।17।। अतिगम्भीरता- शोक का कारण होने पर भी विकार न होना (समभाव से रहना) गम्भीरता कहलाता है।।७५उ.।। रसा.५
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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