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________________ प्रथमो विलासः [११] (शिष्यों) और अप्सराओं के साथ देवताओं की सभा में इन्द्र के सम्मुख प्रायोजित किया और सभी लोगों के उपकार के लिए भरत ने नाट्यशास्त्र की भी रचना किया। तदन्तर उन्हीं (भरत) के अनुसार शाण्डिल्य, कोहल, दत्तिल, मतङ्ग और अन्य जो उनके पुत्र थे, उन्होंने अनेक प्रकार के ग्रन्थों की रचना किया जो पृथ्वी पर प्रसिद्ध हैं। उन (शाण्डिल्य इत्यादि के ग्रन्थों) के अतिगम्भीर (गूढ़) होने, (विषयवस्तु के) अस्तव्यस्त होने तथा सम्प्रदाय के विनष्ट हो जाने के कारण उनके जानने वाले बहुत कम हैं। प्राय: उनके प्रचार प्रसार की कमी होने से नाट्य-पद्धति अस्पष्ट हो गयी है। इसी कारण से यह मेरा प्रयत्न उसके प्रकाशित करने लिए किया जा रहा है जो तत्त्वग्राही बुद्धिमान् (विद्वान्) लोगों के चित्त को आनन्द देगा।।४९-५४॥ नेदानीन्तनदीपिका किमु तमस्सयातमुन्मूलयेज्ज्योत्स्ना किं न चकोरपारणकृते तत्कालसंशोभिनी । बालः किं कमलाकरान् दिनमणिर्नोल्लासयेदसा तत्सम्प्रत्यपि मादशामपि वचः स्यादेव सत्प्रीतये ।। ५५।। ग्रन्थ-रचना का प्रयोजन- अब तक कोई ऐसी दीपिका (प्रकाशित करने वाला दीपक) नहीं थी जो अन्धकार के समूह को जड़ से विनष्ट कर दें। तत्काल संशोभित (शोभायमान होने वाली) उस चाँदनी से क्या लाभ जो चकोर के पान करने के लिए उपयुक्त न हो। उस बाल सूर्य से क्या लाभ जो अपनी चमक से कमलों के समूह को उल्लसित (प्रफुल्लित) न करे। तो इस समय मुझ जैसे की वाणी सज्जन लोगों को प्रसन्न करने के लिए (समर्थ) होवे।।५५॥ विमर्श- शिङ्गभूपाल के कहने का तात्पर्य है कि अब तक कोई नाट्यशास्त्र विषयक ऐसा ग्रन्थ नहीं था जो नाट्य के विषय में समुचित जानकारी दे सके। जो नाट्यशास्त्र-विषयक ग्रन्थ हैं, वे अतिविस्तार, अति संक्षेप अथवा एकाङ्गी होने के कारण उसी प्रकार अनुपयोगी हैं जैसे चकोर के पान के लिए अनुपयोगी चाँदनी अथवा कमलों को अपनी चमक से प्रफुल्लित न करने वाला सूर्य। स्वच्छस्वादुरसाधारो वस्तुच्छायामनोहरः । सेव्यः सुवर्णनिधिवद् नाट्यमार्गः सनायकः ।।५६।। स्वच्छ और आस्वादनीय (शृङ्गारादि) रस का आधार तथा कथावस्तु की छाया से मनोहर नायक के सहित नाट्यमार्ग का सेवन करना चाहिए।॥५६॥ सात्त्विकाचैरभिनयैः प्रेक्षकाणां यतो भवेत् । नटे नायकतादात्म्यबुद्धिस्तन्नाट्यमुच्यते ।।५७।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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