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________________ |१०॥ रसार्णवसुधाकरः धयं यशस्यमर्थ्यञ्च सर्वशिल्पप्रदर्शनम् ।।४६।। परं पञ्चममाम्नायं सर्ववर्णाधिकारिकम् । इति पृष्टः स तैर्ब्रह्मा सर्ववेदाननुस्मरन् ।।४७।। तेभ्यश्च सारमादाय नाट्यवेदमथासृजत् । अध्याप्य भरताचार्य प्रजापतिरभाषत ।।४८।। नाट्य का उद्भव पहले इन्द्रादि वे (देवतागण) चतुरानन (ब्रह्मा) को प्रणाम करके (और) अञ्जलि बाँधकर सर्वज्ञ (चतुरानन) से कहा __ हे भगवान् जो (साथ-साथ) सुनने और देखने की योग्यता वाला, मनोरम, धर्मसम्मत अथवा विशेष गुणों से युक्त, कीर्ति की ओर ले जाने वाला (विख्यात) उचित, सभी कलाओं को प्रदर्शित करने वाला तथा सभी (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) वर्गों के लिए अधिकार सम्पन्न हो, ऐसे पञ्चम वेद को हम लोग (आप से) सुनना (जानना) चाहते हैं। उन (देवताओं) के द्वारा इस प्रकार पूछने पर उस ब्रह्मा ने सभी वेदों का स्मरण करते हुए और उनसे सार (तत्त्व ) को लेकर नाट्यवेद की रचना किया (और उस नाट्यवेद को) आचार्य भरत को पढ़ाकर प्रजापति ने कहा-॥४५-४८॥ सह पुत्रैरिमं वेदं प्रयोगेण प्रकाशय । इति तेन नियुक्तस्तु भरतः सह सूनुभिः ।। ४९।। प्रायोजयत् सुधर्मायामिन्द्रस्याग्रेऽप्सरसां गणैः । सर्वलोकोपकाराय नाट्यशास्त्रं च निर्ममे ।।५।। तथा तदनुसारेण शाण्डिल्यः कोहलोऽपि च । दत्तिलश्च मतङ्गश्च ये चान्ये तत्तनूभवाः ।।५।। ग्रन्थान्नानाविधाञ्चक्नुः प्रख्यातास्ते महीतले । तेषामतिगभीरत्वाद् विप्रकीर्णक्रमत्वतः ।। ५२।। सम्प्रदायस्य विच्छेदात् तद्विदां विरलत्वतः । प्रायो विरलसञ्चारा नाट्यपद्धतिरस्फुटा ।।५३।। तस्मादस्मत्प्रयत्नोऽयं तत्प्रकाशनलक्षणः । सारैकग्राहिणां चित्तमानन्दयति धीमताम् ।।५४।। रसार्णवसुधाकर के रचना की आवश्यकता (हे भरत!) इस वेद को अपने पुत्रों (शिष्यों) के साथ प्रयोग (अभिनय) द्वारा प्रकाश में लाओ। इस प्रकार उस (ब्रह्मा के द्वारा) नियुक्त किये गये भरत ने अपने पुत्रों
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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