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________________ तृतीयो विलासः [ ४५३] से तथा वृद्ध तात शब्द से वाच्य होते हैं। आचार्य उपाध्याय से ,गणिका (वेश्या) अज्जुका से, राजा महाराज से, विद्वान् भाव शब्द से वाच्य होते हैं। कामना से ब्राह्मणों के द्वारा राजा नाम से, सेवकों और प्रजाओं द्वारा देव शब्द से तथा परिजनों के द्वारा सार्वभौम राजा भट्टारक शब्द से वाच्य होता है।मुनियों द्वारा अपत्यप्रत्यय के कारण राजा शब्द से वाच्य होता है तथा विदूषक द्वारा इच्छानुसार सखे या राजन् शब्द से तथा ब्राह्मणों द्वारा सचिव अमात्य या सचिव शब्द से वचनीय है। शेष लोगों द्वारा राजा आर्य तथा सारथि द्वारा रथारुढ़ राजा आयुष्मान् शब्द से वाच्य होता है। प्रशान्त (नायक राजा) तपस्विन् तथा साधु शब्द से वाच्य होता है। युवराज स्वामी शब्द से, राजकुमार भर्तुदारक शब्द से तथा भागिनीपति (बहनोई) राजा आवुत्त, सेनापति श्यालक शब्द से वचनीय होता है। राजा की प्रियतमा स्त्री सेवकजनों द्वारा भट्टिनी, स्वामिनी, देवी और भट्टारिका शब्द से वाच्य होती है राजा के द्वारा राजमहिषी देवी शब्द से तथा अन्य (पत्नियाँ) प्रिया शब्द से वाच्य होती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य सभी लोगों द्वारा पत्नी आर्या शब्द से, पुत्र द्वारा पिता तातपाद तथा माता अम्बा शब्द से वाच्य होती है। भाई के द्वारा बड़ा भाई तथा मामा इत्यादि आर्य शब्द से वचनीय होते हैं।।३१५-३२५पू.॥ अथ सदृशनिर्देश: सदृशः सदृशो वाच्यो वयस्येत्याह्वयेन वा ।।३२५।। हलेति सख्या तु सखी कथनीया सखीति वा । (२) सदनिर्देश-समान लोगों द्वारा अपने समान लोगों को 'वयस्य' इस प्रकार के आह्वान से तथा सखी के द्वारा अपनी सखी हला अथवा सखी शब्द से कथनीय होती है।।३२५उ.-३२६पू.॥ अथ कनिष्ठनिर्देश: सुतशिष्यकनीयांसो वाच्या गुरुजनेन हि ।।३२६ ।। वत्सपुत्रकदीर्घायुस्तातजातेति संज्ञया । अन्यः कनीयानार्येण जनेन परिभाष्यते ।।३२७।। शिल्पाधिकारनामभ्यां भद्र भद्रमुखेति वा । वाच्ये नीचातिनीचे तु हण्डे हझे इति- क्रमात् ।।३२८।। भळ वाच्याः स्वस्वनाम्ना भृत्यः शिल्पोचितेन वा । (३) कनिष्ठ निर्देश- गुरुजनों (श्रेष्ठ लोगों) द्वारा पुत्र, शिष्य, कनिष्ठ लोग वत्स, पुत्रक, दीर्घायु, तात, जात इस नाम से कथनीय होते हैं। अन्य कनिष्ठ पूज्य लोगों द्वारा उनके शिल्प और अधिकार वाले नामों से भद्र अथवा भद्रमुख नाम से परिभाषित किये जाते हैं तथा नीच और नीचतर लोग (बड़ों द्वारा) क्रमश: हण्डे और हज्जे शब्द से अभिहित किये जाते हैं। स्वामी के द्वारा सेवक उनके नाम अथवा कार्य के अनुसार नामों से बुलाते हैं।।३२६उ.३२९पू.।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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