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________________ [४४६] रसार्णवसुधाकरः कर रही है।।६५१॥ अत्र गदवाक्यं स्पष्टमेव । यहाँ गद्गद वाक्य स्पष्ट है। अथ प्रलापः प्रलापः स्यादयोग्यस्य योग्यत्वेनानुमोदनम् ।। २८२।। (१०) प्रलाप- अयोग्य (कथन) का योग्य (कथन) के द्वारा अनुमोदन करना प्रलाप कहलाता है।।२८२उ.।। यथा तत्रैव' (आनन्दकोशनाम्नि प्रहसने)राजा- (सौदायोंद्रेकम्) अये बिडालाक्ष अस्मदीये नगरे विषये च पतिहीना च या नारी जायाहीनश्च यः पुमान् । तौ दम्पती यथाकामं भवेतामिति घुष्यताम् ।।652।। बिडालाक्ष:-देवः प्रमाणम्। (इति सानुचरो निकान्तः)। गुहाग्राही- (सश्लाघागौरवम्) नष्टाश्वभग्नशटकन्यायेन प्रतिपादितम् । . उचिता ते महाराज! सेयं कारुण्यघोषणा ।।653 ।। अपि च, मन्वादयो महीपालाः शतयो गामपालयन् । न केनापि कृतो मार्ग एवमाश्चर्यसौख्यदः ।।654।। जैसे वहीं (आनन्दकोश नामक) प्रहसन में राजा- (उदारता के अतिशय के साथ)- हे विडालाक्ष! हमारे नगर में (इस) विषय में जो पति से रहित नारी है और जो पुरुष पत्नी से विहीन है, वे दोनों इच्छानुसार दम्पती (पति और पत्नी) हो जाए- ऐसी घोषणा कर दी जाय।।652।। विडालाक्ष- (इस विषय में) देव (आप) प्रमाण हैं। (अनुचर के साथ निकल जाता है।) गुणग्राही- (प्रशंसा और गौरव के साथ) विनष्ट हुए अश्व और टूटी हुई गाड़ी के न्याय का आप ने प्रतिपादन कर दिया है। हे महाराज! आप की करुणता-पूर्वक घोषणा उचित है।।653।। और भी मनु इत्यादि सैकड़ों राजाओं ने पृथ्वी का पालन किया किन्तु किसी ने भी इस प्रकार के आश्चर्यजनक और आनन्ददायक मार्ग को नहीं बनाया।।654।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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