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________________ तृतीयो विलासः [४२९] प्रकरण के भेद- प्रकरण तीन प्रकार का होता है- शुद्ध धूर्त तथा मिश्र।।२२१पू.॥ (तत्र शुद्धप्रकरणम् )__ कुलस्त्रीनायिकं शुद्धं मालतीमाधवादिकम् ।। २२१।।।। शुद्ध प्रकरण-शुद्ध प्रकरण वह होता है जिसमें नायिका कुलस्त्री होती है। जैसेमालतीमाधव इत्यादि। (अथ धूर्तप्रकरणम् )___ गणिकानायिकं धूर्त कामदत्ताह्वयादिकम् । धूर्तप्रकरण- जिसमें गणिका नायिका होती है, वह धूर्तप्रकरण कहलाता है, जैसेकामदत्ताह्वय इत्यादि। (अथ मिश्रप्रकरणम् ) कितवद्यूतकारादिव्यापारं त्वत्र कल्पयेत् ।। २२२।। मिश्रं तत् कुलजावेश्ये कल्पिते यत्र नायिके । धूर्तशुद्धक्रमोपेतं तन्मृच्छकटिकादिकम् ।। २२३।। मिश्र प्रकरण- मिश्रप्रकरण वह होता है जिसमें धूर्त (कपटी), जुवाड़ी आदि के व्यापार की कल्पना होती है तथा कुलजा (कुलस्त्री) और वेश्या- ये दो नायिकाएँ होती हैं। धूर्त और शुद्ध गुणों से युक्त मृच्छकटिक इत्यादि इसका उदाहरण है।।२२२उ.-२२३॥ (नाटिकाया अपृथग्रूपत्वम्) नाटिका त्वनयो|दो न पृथग रूपकं भवेत् । प्रख्यातं नृपतेर्वृत्तं नाटकादाहृतं यतः ।। २२४।। बुद्धिकल्पितवस्तुत्वं तथा प्रकरणादपि । नाटिका की अभिन्नता- नाटिका (नाटक और प्रकरण) दोनों का भेद है इसलिए अलग रूपक नहीं है क्योंकि नाटिका में प्रख्यात राजा का इतिवृत्त होने से नाटक से भिन्न नहीं है। कवि की बुद्धि से कल्पित इतिवृत्त होने के कारण प्रकरण से भिन्न नहीं है।।२२४-२२५पू.।। विमर्शसन्धिराहित्यं भेदकं चेन्न तन्मतम् ।। २२५।। रत्नावल्यादिके लक्ष्ये तत्सन्थेरपि दर्शनात् । प्रश्न- नाटिका में विमर्श सन्धि नहीं होती?। उत्तर- ऐसी बात नहीं है। रत्नावली इत्यादि नाटिका है। और उस लक्ष्य में वह (विमर्श सन्धि) दिखलायी पड़ती है।।२२५उ.-२२६पू.।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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