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________________ तृतीयो विलासः [ ४१३ ] जैसे अभिरामराघव में यह विद्वान्, कलावान्, रसिक तथा अनेक प्रकार के प्रयोग (व्यवहार) को जानने वाला है - इस प्रकार मैं आप को जानता हूँ कि आपने (तुमने) सब कुछ अच्छी प्रकार से पूरा कर लिया है । 1627 ।। यहाँ विपरीत लक्षण वाली प्रहेलिका के अर्थ को न जानने वाले पारिपार्श्विक के उपालम्भ (उलाहने) के कारण छल है। अथ वाक्केलिः साकाङ्क्षस्यैव वाक्यस्य वाक्केलिः स्यात् समाप्तितः ।। १७५ । । (६) वाक्केलि - समाप्ति पर्यन्त साकाङ्क्ष (प्रकरण प्राप्त) वाक्य को बदल देने (वाक्केलि) को वाक्केलि कहते हैं ।। १७५3. ।। यथा महेश्वरानन्देकुलशोकहरं कुमारमेकं कुहनाभैरवपारणोन्मुखाभ्याम् । अपहूय कृतादरं पितृभ्या - मुपरि प्रस्तुतमोमश्शिवाय 11628 ।। जैसे महेश्वरानन्द में- भीषण सर्प को खाने के लिए उन्मुख पिता और माता के द्वारा कुल के शोक को हरने वाले इकलौते पुत्र को आदर-पूर्वक बुला कर 'ओं नमः शिवाय' (यह शब्द) प्रस्तुत किया गया ( कहा गया ) । 1628 ।। अत्र वाक्ये साकाङ्क्षे विशेषांशमनुक्त्वा नमश्शिवायेति समाप्तिकथनाद् वाक्केलिः । यहाँ साकाङ्क्ष वाक्य में विशेष भाग को न कहकर 'ओम् नमः शिवाय' इस समाप्ति को कहने से वाक्केलि है। अथाधिबलम् - स्पर्धयान्योन्यसामर्थ्यव्यक्तिस्त्वधिबलं भवेत् । (७) अधिबल- दो व्यक्तियों का स्पर्धा से परस्पर सामर्थ्य की व्यक्ति (अभिव्यक्ति = बातचीत करना) अधिबल होता है ।। १७६उ. । यथा वीरभद्रविजृम्भणे मा भूच्चिन्ता तवेयं मयि सति कुशले दुष्करः किं प्रयोगोमानिन् जानासि किं त्वं किमपि न विदिता चातुरी मे त्वया किम् । आस्तां स्वस्तोत्रकन्था कृतमिह कथितैर्भूतपूर्वैः प्रसङ्गैः पत्न्याहं वश्यकर्मा सपदिनटविधावेष सज्जीभवामि ||629
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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