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________________ तृतीयो विलासः [ ३९९] वसन्त की प्रशंसा से प्ररोचना जैसे पद्मावती में रमणीय वसन्त के उदित (प्रारम्भ) होने पर शोभायमान कलियों से रोमाञ्चित, भ्रमरियों के गुञ्जार के झङ्कृत, चञ्चल (पुष्प) के गुच्छों में स्थित जल से विरल, चञ्चल मूंगे के समान अधर वाली लता रूपी वधू अत्यधिक विनम्र शाखा रूपी हाथों से अत्यधिक बढ़े हुए रस की अनुभूति से रसिक होकर आलिङ्गन कर रही है।।607 ।। शरत्प्रशंसया यथा वेणीसंहारे (१.६) सत्पक्षा मधुरगिरः प्रसाधिताशा मदोद्धतारम्भाः । निपतन्ति धार्तराष्ट्राः कालवशान्मेदिनीपृष्ठे ।।608 ।। शरद् की प्रशंसा से प्ररोचना जैसे वेणीसंहार (१.६) में - १. सुन्दर पंखवाले, मीठी बोली वाले, दिशाओं को सुशोभित करने वाले, हर्ष के कारण उद्दाम व्यापार (क्रीड़ा) करने वाले हंस (शरद् ऋतु के) समय के कारण भूतल पर उतर रहे हैं। 2. श्रेष्ठ सेना वाले अथवा उत्तम व्यक्तियों की सहायता से सम्पन्न, मधुरभाषी, दिशाओं को वश में करने वाले, अहङ्कार के कारण धृष्टतापूर्ण कार्य करने वाले, धृतराष्ट्र के पुत्र (दुर्योधनादि) मृत्यु के कारण भूतल पर (मर कर) गिर रहे हैं।।608।। (अथ देशः) देशस्तु देवताराजतीर्थस्थानादिरुच्यते ।।१४३।। तदद्यकालनाथस्य यात्रेत्यादिषु लक्ष्यताम् । देश (स्थान)- देवता अथवा राजा से सम्बन्धित तीर्थ या स्थान इत्यादि देश कहा जाता है। उसे 'कालनाथ की यात्रा' इत्यादि को समझना चाहिए।॥१४३३.१४४पू.।। चेतनास्तु कथानाथकविसभ्यनटाः स्मृताः ।।१४४।। चेतन- कथानार्थ, कवि, सभ्य और नट ये चेतना कहलाते हैं।।१४४उ.।। कथानाथास्तु धर्मार्थरसमोक्षोपयोगिनः । धर्मोपयोगिनस्तत्र युधिष्ठिरनलादयः ।।१४५।। अर्थोपयोगिनो रुद्रनरसिंहनृपादयः । रसोपयोगिनो विद्याधरवत्सेश्वरादयः ।।१४६।। मोक्षोपयोगिनो रामवासुदेवादयो मताः । एके त्वभेदमिच्छन्ति धर्ममोक्षोपयोगिनोः ।।१४७।। कथानाथ (कथानायक)- कथानाथ धर्म, अर्थ, रस और मोक्ष के लिए उपयोगी हैं। युधिष्ठिर, नल इत्यादि धर्म के लिए उपयोगी है। रुद्र, नृसिंह इत्यादि राजा अर्थ के लिए उपयोगी हैं।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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