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________________ [ ३८८] रसार्णवसुधाकरः यहाँ (पुरुष रूप में प्रविष्ट) रावण के द्वारा धनु और कन्या का प्रकृत अर्थ छोड़कर राशि वाले अर्थ को प्रकट करने के कारण यह भ्रंश है। अथ लेशः लेशः स्यादिङ्गितज्ञानकृद्विशेषणवद्वचः । (२७) लेश-विशेषण- युक्त सङ्केतित ज्ञान से किया गया कथन लेश कहलाता है।।११९उ.॥ यथा मालतीमाधवे (२.११) असौ विद्वान् धीरः शिशुरपि विनिर्गत्य भवनादिहायातः सम्प्रत्यविकलशरच्चन्द्रमधुरः । यदालोकस्थाने भवति परमोन्मादतरलैः कटाक्षैर्नारीणां कुवलयितवातायनमिव ।।592।। इत्यत्र कामन्दक्या मालत्यनुरागज्ञाननिवेदनस्योन्मादतरलैरिति विशेषणस्य कथनाल्लेशः। जैसे मालतींमाधव (२/११) में शरद ऋतु के पूर्ण चन्द्रमा के समान मुख वाले बाल्यावस्था में विद्याशाली ये (माधव) भवन से निकल कर यहाँ आये हुए हैं जिनके दर्शन- योग्य स्थान में नगर उन्माद से चञ्चल सुन्दरियों के कटाक्षों रूपी नील-कमलों से युक्त वातायनों से सम्पन्न के समान हो जाता है।।।592।। ___ कामन्दकी द्वारा मालती के ज्ञात अनुराग के निवेदन का 'उन्माद से द्रवीभूत' इस विशेषण के साथ कथन होने से उल्लेख है। अथ क्षोभ: क्षोभस्त्वन्यमते हेतावन्यस्मिन् कार्यकल्पनम् ।।११९।। - (२८) क्षोभ- कारण के अन्यगत (दूसरे में) होने पर (उससे) अन्य (दूसरे) में कार्य का उत्पन्न होना क्षोभ कहलाता है।।११९उ.।। विमर्श- कारण से कार्य की उत्पत्ति होती है किन्तु जब कारण अन्यत्र (अन्यगत) तथा कार्य (उससे) अन्यत्र हो तो वह क्षोभ कहलाता है। यथा रत्नावल्याम् (३/१६)राजा- (उपसृत्योइन्धनमपनीय) देवि! कमिदमकार्य क्रियते। मम कण्ठगताः प्राणाः पाशे कण्ठगते तव । अनर्थार्थप्रयत्नोऽयं त्यज्यतां साहसं प्रिये! ।।593।। अत्र पाशे वासवदत्ताकण्ठगते तत्कार्यभूतस्य प्राणानां कण्ठगतत्वस्य वत्सराजेन
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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