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________________ रसार्णवसुधाकरः विशेषयुक्तं वचनं विज्ञेयं तद् विशेषणम् ।। ११० । (१५) विशेषण - जिसमें बहुत प्रसिद्ध मुख्य अर्थ को कह कर विशेष रूप से वचन का प्रयोग होता है उसे विशेषण जानना चाहिए ।। ११० ।। यथा मालतीमाधवे माधव: [ ३८० ] (चिराद् अभिलिख्य प्रदर्शयति ) । मकरन्दः - (सकौतुकम् ) कथमचिरेणैव निर्माय लिखितः श्लोकः । ( वाचयति) - जगति जयिनस्ते ते भावा नवेन्दुकलादयः प्रकृतिमधुराः सन्त्येवान्ये मनो मदयन्ति ये । मम तु यदियं याता लोके विलोचनचन्द्रिका नयनविषयं जन्मन्येकः स एव महोत्सवः । । ( 1.39)583।। इत्यत्रेन्दुकलादीन्मनोमदहेतुतया प्रसिद्धानुक्त्वा तत्समानमाधुर्यायामपि मालत्यां विशेषकथनादिदं विशेषणम् । जैसे मालतीमाधव में माधव - (बहुत समय के बाद लिख कर दिखलाता है) मकरन्द- कैसे थोड़े समय में बना कर श्लोक भी लिख दिया। (बाँचता है) लोक में अत्यधिक प्रसिद्ध नवीन चन्द्रकला इत्यादि पदार्थ जयशील है । स्वभाव से सुन्दर और भी पद हैं ही जो मन को प्रसन्न करते हैं परन्तु जो यह नेत्र - चन्द्रिका लोक में मेरे नेत्रविषय को प्राप्त हो गयी है, जन्मशील पदार्थों में एक वहीं सौख्य का कारण है।। (1.39) 583।। यहाँ मन के मद के कारण चन्द्रकला इत्यादि प्रसिद्ध (अर्थों) को कह कर उसके समान माधुर्य वाली मालती में विशेषरूप रूपकथन होने से विशेषण हैं। अथ पदोच्चय: बहूनां तु प्रयुक्तानां पदानां बहुभिः पदैः । उच्चयः सदृशार्थो यः स विज्ञेयः पदोच्चयः ।। १११ | (१६) पदोच्चय - अनेक प्रयुक्त पदों का अनेक पदों से जो सदृशार्थ (समान अर्थ) सङ्ग्रहित (संग्रह किया हुआ) होता है, वह उसे पदोच्चय समक्षना चाहिए ॥ १११ ॥ यथा कर्पूरमञ्जर्याम् (२/९)(वाचयति) राजा सह दिअहणिसाहिं दीहरा सासदंडा सह मणिवलएहिं बाहधारा गलंति । सुहअ ! तुह विओए तीए उत्तंमिरीए सहअ तणुलदाए दुब्बला जीवीदासा । 1584 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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