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________________ [३६२] रसार्णवसुधाकरः अथ गोत्रस्खलितम्- ---- . --- तद् गोत्रस्खलितं यत्तु नाम व्यत्ययभाषणम् । (7) गोत्रस्खलित- नामपरिवर्तन (किसी के नाम के स्थान पर दूसरे का नाम ले लेने) के साथ कहा गया कथन गोत्रस्खलित कहलाता है।।६५पू.॥ यथा- विक्रमोवशीये (तृतीयाङ्के आदौ) (ततः प्रविशतो भरतशिष्यौ) प्रथम:- अये सदोषावकाश इव ते वाक्यशेषः। द्वितीयः- आम्! तहिं उव्वसीए वअणं पमादक्खलिदं आसी। (आम् तत्र उर्वश्याः वचनं प्रमादस्खलितमासीत्)। प्रथमः- कथमिव? द्वितीयः- लच्छीभूमिआए वट्टमाणा उव्वसी वारुणीभूमिआए वट्टमाणाए मेणआए पुच्छिदा। सहि समाअदा एदे तेल्लोक्कपुरिसा सकेसवा लोअवाला। कदमस्मिं दे भावाहिणिवेसोत्ति। (लक्ष्मीभूमिकायां वर्तमाना उर्वशी वारुणीभूमिकायां वर्तमानया मेनकया पृष्टा सखि! समागता एते त्रैलोक्यपुरुषाः सकेशवा लोकपालाः। कतमस्मिंस्ते भावाभिनिवेश इति। प्रथम:- ततस्ततः। द्वितीयः- तदो ताए पुरिसोत्तमेत्ति भणिदव्वे पुरूरवसि त्ति निग्गदा वाणी। (ततस्तस्याः पुरुषोत्तम इति भणितव्ये पुरुरवसीति निर्गता वाणी।) जैसे विक्रमोर्वशीय तृतीय अङ्क में (प्रारम्भ से) (तत्पश्चात् भरत के दो शिष्य प्रवेश करते हैं, प्रथम- तुम्हारा अधूरा वाक्य किसी त्रुटि को सूचित कर रहा है। द्वितीय- हाँ! उसमें उर्वशी का संवाद प्रमादवश कुछ अशुद्ध हो गया था। प्रथम- वह कैसे? द्वितीय- लक्ष्मी का अभिनय कर रही उर्वशी से वारुणी का अभिनय कर रही मेनका ने पूछा- हे सखी! ये त्रैलोक्य श्रेष्ठ पुरुष और भगवान् विष्णु के साथ सम्पूर्ण लोकपाल यहाँ पधारे हुए हैं। इनमें से तुम किसे चाहती हो? प्रथम- तब क्या हुआ? द्वितीय- तब कहना चाहिए था- पुरुषोत्तम, किन्तु उसके मुख से निकल गया'पुरुरवा'। इत्यत्र नामव्यतिक्रमः स्फुट एव । यहाँ नाम का परिवर्तन स्पष्ट है। अथौजः ओजस्तु वागुपन्यासो निजशक्तिप्रकाशकः ।।८६।। (8) ओज- अपनी शक्ति को प्रकाशित करने वाला कथन ओज कहलाता है।।-८६उ.॥ यथा उत्तररामचरिते (६.१६)'कुश:-सखे! दण्डायन! आयुष्मतः किल लवस्य नरेन्द्रसैन्यैरायोधनं ननु किमात्थ सखे! तथेति ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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