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________________ [३४६] रसार्णवसुधाकरः दिनकरकुललक्ष्मीवल्लभो । रामभद्रः ।।(9.59)548।। इत्यन्तेन निखिलभुवनबाघाशमनरूपरावणवधसम्पादितधर्मादिलक्षणकार्यविशेषसङ्ग्रहपादादानम्। जैसे वहीं (बालरामायण के नवम अङ्क में)पुरन्दर- हे मित्र दशरथ! रामभद्र का यह पौरुष अद्वितीय है। अत: शङ्कर त्रिपुररूपी इन्धन के पूर्णतः जलाने वाले रहें और कार्तिकेय का पण्डित्य क्रौञ्चपर्वत के भेदन में विदित रहे किन्तु उन दोनों को संग्राम- उत्सव का ज्ञान नहीं है। इस लङ्कापति रावण के मुख रूपी वन को कमल की कटाई की भाँति काट कर राम वीरों के अद्भुत चरित्र की सीमा पर स्थित हो गये हैं।(9.57)।।547 ।। ___"रणप्रेमी देवाङ्गनाओं के द्वारा जिन पर मन्दार की माला बरसायी गयी है, लक्ष्मण पर जो हाथ रखे हैं, बन्दियों ने जिसका जयकार किया है और सूर्यकुल की लक्ष्मी के जो वल्लभ हैं, वे रामचन्द्र रथ से स्वयं उतर गये" ।(9.59)।।548।। यहाँ तक सभी भुवनों के विघ्न शमन रूपी रावण के वध से सम्पादित धर्मादि रूपी कार्य विशेष के संक्षेप होने के कारण आदान है। अथ निर्वहणसन्धिः । मुखसन्ध्यादयो यत्र विकीर्णा बीजसंयुतः । महाप्रयोजनं यान्ति तन्निर्वहणमुच्यते ।।६७।। (५) निर्वहण सन्धि- (स्थान-स्थान पर) बिखरे हुए बीज वाली मुख इत्यादि सन्धियाँ जहाँ प्रधान- प्रयोजन को प्राप्त करती हैं, तब उसे निर्वहण सन्धि कहा जाता है।।६७॥ विमर्श- बीज से सम्बन्धित मुख इत्यादि पूर्व कथित चारों सन्धियों में स्थानस्थान पर विखरे हुए अर्थ जब प्रधान- प्रयोजन की सिद्धि के लिए समेट लिये जाते हैं तब उसे निर्वहण सन्धि कहा जाता है। सन्धिविबोधौ प्रथनं निर्णयपरिभाषणे प्रसादश्च । आनन्दसमयकृतयो भाषोपनिगृहने तद्वत् ।।६८।। अथ पूर्वभावसयुजावुपसंहारप्रशस्ती च ।। इति निर्वहणस्याङ्गान्याहुरमीषां तु लक्षणं वक्ष्ये ।।६९।। निर्वहण सन्धि के अङ्ग- निर्वहण सन्धि के ये (चौदह) अङ्ग होते हैं- (1) सन्धि, (2) विबोध, (3) ग्रन्थन, (4) निर्णय, (5) परिभाषण, (6) प्रसाद, (7) आनन्द, (8) समय, (9) कृति, (10) भाषा, (11) उपगूहन, (12) पूर्वभाव (13) उपसंहार और (14) प्रशस्ति। जाता है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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