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________________ तृतीयो विलासः [३२७] यहाँ से लेकर "जिसने पहले काटे गये क्षत्रियों के कण्ठ से निकल रहे रक्तनालियों से बने तीन तालाबों में पितरों की निवाप क्रिया किया था वही कार्तिकेय का सहपाठी (परशुराम) स्वयं शङ्कर के चाप का दलन सुन कर नाममात्र के शत्रु राम को ढूँढ़ रहा है। (4.57)।।527 ।। यहाँ तक शङ्कर जी के चाप के दलन, आदेश देने और निवेदन करने के कारण राघव, विश्वामित्र तथा नगरवासियों के परामर्श से ब्रह्मण, क्षत्रिय इत्यादि वर्गों को इकट्ठे होने के कारण वर्णसंहार है। अथ गर्भसन्धिः दृष्टादृष्टस्य बीजस्य गर्भस्त्वन्वेषणं मुहुः ।। ४९।। आप्त्याशापताकानुरोधादङ्गानि कल्पयेत् । (३) गर्भ सन्धि- गर्भसन्धि वह होती है जिसमें दिखायी पड़ने के बाद फिर नष्ट हो गये बीज का बार-बार अन्वेषण होता है, इसमें पताका नामक अर्थकृति हो भी सकती है और नहीं भी, किन्तु (फल के) प्राप्ति की सम्भावना अवश्य होती है।।४९३.५०पू.॥ अभूताहरां मार्गों रूपोदाहरणे क्रमः ।।५।। सङ्ग्रहश्शानुमानं च तोटकाधिबले तथा । उद्वेगः सम्भ्रमाक्षेपो द्वादशैषां तु लक्षणम् ।।५१।। गर्भसन्धि के अङ्ग- (1) अभूताहरण, (2) मार्ग, (3) रूप, (4) उदाहरण (5) क्रम, (6) संग्रह, (7) अनुमान, (8) तोटक, (७) अधिबल, (10) उद्वेग, (11) सम्भ्रंम और (12) आक्षेप - ये बारह अङ्ग होते हैं। इनका लक्षण कहा जा रहा है।।५०उ.-५१॥ अथाभूताहरणम् अभूताहरणं तत्स्यात् वाक्यं कपटाश्रयम् । (1) अभूताहरण- कपटाश्रित (कपटयुक्त) कथन अभूताहरण कहलाता है।।५२पू.॥ यथा तत्रैव (बालरामायणे) उन्मत्तदशानननाग्नि पञ्चमाझेजैसा वहीं (बालरामायण के) उन्मत्तदशानन नामक पञ्चम अङ्क में 'माल्यवान्- (हसित्वा) वृद्धबुद्धिर्हि प्रथमं पश्यति चरम कार्यम्। यन्मया धूटिधनुरनुक्षेपणतः प्रभृति मतिचक्षुषा दृष्टमेव यदुत दशकन्वरोऽनुसन्यास्यति सीताहरणम्। मायामयः- ततस्ततः। माल्यवान्- ततश्च मया मन्दोदरीपितुर्मायागुरोर्मयस्य प्रथमशिष्यो विशारदनामा यन्त्रकारः सबहुमानं नियुक्तः सीताप्रतिकृतिकरणाय। विरचिता च सा रावणोपच्छन्दनार्थम्। अभिहितं च
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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