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है।”।। (4.33) 525।।
यहाँ तक तर्कों के द्वारा पिता के निर्देश होने के कारण भी माता के वध रूपी कार्य का प्रतिपादन होने से अथवा गुरुओं के अशोचनीय जीवन के तर्कपूर्ण उद्घाटन का प्रतिपादन होने से उपन्यास है।
अर्थ वर्णसंहार:
रसार्णवसुधाकरः
सर्ववर्णोपगमको वर्णसंहार उच्यते ।
(13) वर्णसंहार - (ब्राह्मणादि) सभी वर्णों का एक स्थान पर इकट्ठा हो जाना वर्णसंहार कहलाता है।।४९पू. ।।
तथा तत्रैव (बालरामायणे चतुर्थेऽङ्के) -
'जामदग्न्यः - (कर्णं दत्त्वा आकाशे ) किं ब्रूथ ? केन न वर्णितं दाशरथेः शङ्करकार्मुकारोपणम्। को न विस्मितस्तद्भङ्गेन । (सापेक्षम् ) ( केन न वर्णितमित्यादि पठति शृणुत भोः ।
यः कर्त्ता हरचापदण्डदलने यश्चानुमन्ता ननु
द्रष्टा यश्च परीक्षिता च य इह श्रोता च वक्ता च यः ।
सद्यः खण्डितकण्ठपीठवलयः केलिं करिष्यत्ययं
कीलालोल्लसितस्य तस्य परशुर्भर्गप्रसादीकृतः । (4/56)।1526।।
इत्युपक्रम्य
लूनक्षत्रियकण्ठमण्डलगलत्कीलालकुल्याभृत
प्राग्मारेषु सरःसु यस्त्रिषु रुषा चक्रे निवापक्रियाम् ।
श्रुत्वा धूर्जटिचापदण्डदलनं नाम्नश्च सापत्नकं
रामो राममयं स्वयं गुहाध्यायी समन्विष्यति । । (4/56)527।। इत्यन्तेन हरचापदलनस्य निषिद्ध्या कर्तृतया अनुमन्तृतया स्तोतृतया च राघवविश्वामित्रपौरादिपरामर्शेन ब्राह्मणक्षत्रियादिवर्णानां संग्रहणाद् वर्णसंहारः ।
जैसे वहीं (बालरामायण के चतुर्थ अङ्क में ) -
" जामदग्न्य- (कान लगाकर आकाश की ओर मुँह करके) क्या कहते हो? कि राम के धनुष चढ़ाने का क़िसने वर्णन नहीं किया ( अर्थात् सभी लोगों ने किया) और उसको टूटने से कौन विस्मित (चकित) नहीं हुआ। (सापेक्ष रूप से) (कौन वर्णन नहीं किया इत्यादि दुहराते हैं) तो हे लोगों ! सुनों
"जो शङ्कर चाप को तोड़ने वाला है जो अनुमति देने वाला है, जो दर्शक है, जो परीक्षक है और जो वक्ता है - उन सभी के रक्त से प्रसन्न यह शङ्कर- प्रदत्त परशु कण्ठों को काट कर क्रीडा करेगा" ।।4.561152611.