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________________ |२९६] रसार्णवसुधाकरः नित्यं श्रीयनपोतक्षितिपतिजनुषः शिङ्गभूपालमौले: सौन्दर्य सुन्दरीणां हरिणविजयिनां वागुरा लोचनानाम् । दानं मन्दारचिन्तामणिसुरसुरभीगर्वनिर्वापणावं विज्ञानं सर्वविद्यानिधिमुनिपरिषच्छेमुषीभाग्यरेखा ।। २६५।। ।। इति श्रीमदान्त्रमण्डलाधीश्वरप्रतिगण्ड भैरवश्रीमदनपोत नरेन्द्रनन्दनभुजबलभीमश्रीशिङ्गभूपालविरचिते रसार्णव सुधाकरनामनि नाट्यालङ्कारे रसिकोल्लासो . नाम द्वितीयो विलासः।। श्रीयनपोतराजा के पुत्र तथा शिङ्गराजाओं में चूड़ामणि (शिङ्गभूपाल) की सुन्दरियों में सौन्दर्य, हरिणों को पराजित करने वाले नेत्रों में पाश (फँसाने का फन्दा), मन्दार चिन्तामणि और देवताओं की सुरभि (नामक गाय) के (वाञ्छित दान देने के) गर्व को शान्त करने वाले चिह्न वाला दान तथा सभी विद्याओं के ज्ञाता विद्वानों की सभा में वृद्धि को प्राप्त भाग्य रेखा थी।॥२६५॥ इस प्रकार श्रीमान् आन्ध्र मण्डल के राजा प्रतिगण्डभैरव श्रीसम्पन्न अनपोत राजा के पुत्र, भुजबलभीम श्रीशिङ्गभूपाल द्वारा विरचित रसार्णवसुधाकर नामक नाट्यालङ्कार में रसिकोल्लास नामक द्वितीय विलास समाप्त।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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