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________________ द्वितीयो विलासः [ २९५] इत्यादिषु स्त्रीपुंसव्यक्तिमात्रविभावसद्भावः तदविवेकजनितहारस्यपकनिर्मग्नं शृङ्गार-गन्धगजमुखतुं त्वरितमित्यलं रसाभासापलापसंरम्भेण। (दिलीप ने) अरुन्धती से उपसेवित तपस्वी वसिष्ठ को स्वाहा देवी से उपसेवित अग्नि के समान देखा ॥रघु १.५६॥ इत्यादि में स्त्री-पुंस व्यक्ति मात्र के विभाव इत्यादि के उत्पन्न और वासना लक्षण वाले अनुभाव से उत्पन्न होने के कारण शृङ्गार (का आभास) आस्वाद्य होना चाहिए। __ और क्या सुरत के सुख में पड़ी आर्या को 'मर गयी,' समझ कर हलवाहा भाग पड़ा। (इस दृश्य को देखकर) थोड़े विकसित वृन्तभार से झुकी हुई कपासी हँस पड़ी।।500।। इत्यादि में स्त्री पुंस व्यक्तिमात्र विभाव से उत्पन्न और उस (हलवाहे) के अविवेक से उत्पन्न हास्य-रुपी कीचड़ में फंसे हुए शृङ्गार रुपी मतवाले हाथी को निकालने के लिए शीघ्रता होना ही पर्याप्त है। इससे अधिक रसाभास के विषय में कथन अपलाप है। ननु सीतादिविभावैर्वस्तुमात्रैरेव योषिन्मात्रप्रतीतो सामाजिकानां रसोदयः, न पुनर्विशिष्टः, तत्कथमिति चेद, उच्यते। शङ्का-सीता इत्यादि विभावों से वस्तुमात्र के कारण ही स्त्रीमात्र में प्रतीति होने पर सामाजिकों में रस का उदय हो जाता है, विशिष्टों द्वारा नहीं। वह कैसे होता है? अत्र जनकतनयात्वरामपरिग्रहत्वादिविरुद्धधर्मपरिहारेण ललितोज्ज्वल. शुचिदर्शनीयत्वादिविशिष्ट शब्दतः सीतादिविभावो योषित्सामान्यं तादृशमेव ज्ञापयति। न पुनः खीजातिमात्रमितिसकलमपि कल्याणम् । समाधान- यह जनक की पुत्री होने और राम की पत्नी इत्यादि विरुद्ध धर्म के परिहार होने से ललित, उज्ज्वल, शुचि और दर्शनीय इत्यादि वैशिष्ट्य ही शब्द से प्रतिपादित सीता इत्यादि विभाव स्त्री सामान्य को भी वैसा ही ज्ञापित करता है। सम्पूर्ण स्त्री जाति मात्र को नहीं। इस प्रकार सभी लोगों का कल्याण होवे। हरिश्चन्द्रो रक्षाकरणरुचिसत्येषु वचसां विलासे वागीशो महति नियते नीतिनियमे । विजेता गाङ्गेयं जनभरणसम्मोहनकला व्रतेषु श्रीशिक्षितिपतिरुदारो विहरते ।।२६४।। वचनों की रक्षा करने में रुचि रखने वाले सत्यसम्पन्न (लोगों) में हरिश्चन्द्र, विलास में वागीश और महान् निर्धारित नीतिशास्त्र में गङ्गा के पुत्र भीष्म (या कार्तिकेय) को पराजित करने वाले तथा लोगों के पालन और सम्मोहन की कला के व्रत में उदार श्री शिभूपाल मनोविनोद करते हैं।।२६४॥
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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