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________________ [२९२] रसार्णवसुधाकरः तु मध्यमत्वं मन्दत्वं चेति तदनुरागस्य नाभासता। अत्र तु वैषम्येणानेकत्र प्रवृत्तेराभासत्वमुपपद्यते। शंका- इस प्रकार दक्षिण नायकों का (अनेक नायिकाओं के साथ सम्बन्ध रहने से) राग की आभासता होनी चाहिए। समाधान- ऐसी बात नहीं है क्योंकि दक्षिण नायक का अनेक नायिकाओं के प्रति वृत्तिमात्र से ही साधारण भाव रहता है, राग से नहीं। तो (साधारण वृत्ति वाले नायक का) किसी (नायिका) के प्रति प्रौढ़, किसी के प्रति मध्यम तथा किसी के प्रति मन्द- इस प्रकार के (भेद के कारण) आभासता प्रकट नहीं होती। किन्तु यहाँ वैषम्यता के कारण अनेक वृत्ति की आभासता उत्पन्न हो सकती है। तिर्यग्रागाद् यथा (कुमारसम्भवे ३.३६) मधु द्विरेफः कुसुमैकपात्रे पपौ प्रियां स्वामनुवर्तमानः । शृङ्गेण संस्पर्शनिमीलिताक्षी मृगीमकण्डूयत कृष्णसारः ।।497।। तिर्यग्राग से रसाभासता जैसे (कुमारसम्भव में) अपनी प्रियाओं का अनुसरण करते हुए भ्रमर ने एक ही पुष्प रूपी पात्र में मधु का पान किया और काले हरिण ने (अपनी) सिंग (शृङ्ग) से बन्द किये हुयी आखों वाली हरिणी को खुजलाते हुए संस्पर्श किया।।497 ।। . म्लेच्छरागाद् यथा( गाथासप्तसत्याम् ४/६०)अज्जं मोहणसुत्तं मिअत्ति मोत्तूण पलाइए हलिए । दरफुडिअवेण्टभारो अराहि हसिअं च फलहीहिं ।।498।। (आर्यां मोहनसुप्तां मृतेति मत्वा पलायिते हलिके । दरस्फुटितवृन्तभारावनतयासितमिव कार्यासलताभिः।।) अत्र सुरत मोहनसुप्ति मरणदशयोर्विवेकाभावेन हालिकस्य म्लेच्छत्वं गम्यते। म्लेच्छराग से रसाभासता जैसे (गाथासप्तशती ४/६०) सुरत के सुख में पड़ी आर्या को ‘मर गयी' समझ कर हलवाहा भाग पड़ा, ( इस दृश्य को देखकर) थोड़े विकसित वृन्तभार से झुकी हुई कपासी हंस पड़ी।।498।। ___यहाँ सुरत की मूर्छा में सुप्ति और मरण के विवेक का अभाव होने के कारण हलवाहे का म्लेच्छत्व ज्ञात होता है। ननु तिर्यम्लेच्छगतयोराभासत्वं न युज्यते। तयोर्विभावादिसम्भवात् । असम्भवे नास्वादयोग्यता इति चेदन। भो! म्लेच्छरसवादिन् उत्कलाधिपतेः शृङ्गाररसाभिमानिनो नरसिंहदेवस्य चित्तमनुवर्तमानेन विद्याधरेण कविना बाढमभ्यन्तरी-कृतोऽसि। एवं खल समर्थितमेकावल्यामनेन अपरे तु रसाभासं तिर्यक्ष प्रचक्षते। तत्तु परीक्षाक्षमम्। तेष्वपि विभावा
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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