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________________ [ २८८] रसार्णवसुधाकरः (अशिष्ट) मंत्री द्वारा राजा आभासित होता है। विमर्श:- अङ्ग रस को स्वेच्छापूर्वक अङ्गीरस से अधिक प्रतिष्ठा देना ही आभास कहलाता है। जिस प्रकार अमात्य का राजा के समान आचरण करना अनुचित है उसी प्रकार अङ्ग रस को अङ्गी रस की अपेक्षा विशेष महत्व देना अनुचित है। इस अनुचितता के कारण रस का पूर्णरूपेण परिपाक नहीं होता। अत: वहाँ रस का आभास मात्र होता है। इसी को रसाभास कहा जाता है। तथा च भावप्रकाशिकायाम् (६/१६-२०) शृङ्गारो हास्यभूयिष्ठ शृङ्गाराभास ईरितः । हास्यो बीभत्सभूयिष्ठो हास्याभास इतीरित: ।। वीरो भयानकप्रायो वीराभास इतीरितः । अद्भुतः करुणश्लेषादद्भुताभास उच्यते ।। रौद्रः शोकभयाश्लेषाद् रौद्राभास इतीरितः । करुणे हास्यभूयिष्ठः करुणाभास उच्यते ।। बीभत्सोऽद्भुतशृङ्गारी वीभत्साभास उच्यते । स स्याद् भयानकाभासो रौद्रवीरोंपसङ्गमात् ।।इति।। जैसा कि भावप्रकाशिका (६/१६-२०) में (शारदातनय) ने कहा है शृङ्गाराभास- हास्य से अभिभूत (हास्य रस की अधिकता वाला) शृङ्गाराभास कहा गया है। हास्याभास उसी प्रकार बीभत्स रस से अभिभूत हास्यरस हास्याभास कहलाता है। वीराभास- भयानक रस से अभिभूत वीररस वीराभास कहलाता है। अद्भुताभास- करुण रस (की अधिकता से) श्लिष्ट अद्भुत रस अद्भुताभास कहा जाता है। करुणाभास- हास्य रस से अभिभूत करुण रस करुणाभास कहलाता है। बीभत्साभास- अद्भुत और शृङ्गार रस के मिश्रण से अभिभूत बीभत्स रस बीभत्साभास कहा जाता है। भयानकाभास- रौद्र और वीर रस से अभिभूत भयानक रस भयानकाभास कहलाता है। अत्र शृङ्गाररसस्यारागादनेकरागात् तिर्यग्रागाम्लेच्छारागाच्चेति चतुर्विधमाभासभूयस्त्वम् । शृङ्गाररसाभास के भेदः- यहाँ अराग, अनेक राग, तिर्यग्राग तथा म्लेच्छ राग से शृङ्गार रस का आभासत्व चार प्रकार होता है। तत्रारागस्वेकत्र रागाभावः। (१) अराग- अराग का अर्थ है- एकत्र रागाभाव (अर्थात् नायक तथा नायिका में से एक का राग न होने पर) अराग शृङ्गाराभास होता है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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