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________________ द्वितीयो विलासः [ २७१] अर्थों से युक्त होते हैं तो पुर्वानुराग (विप्रलम्भ) में व्रीड़ा इत्यादि से युक्त विविध प्रकार की वञ्चना होती है।, प्रवास (विप्रलम्भ) में दीर्घ काल के कारण व्याविद्ध (व्यवधान अथवा अवरोध से युक्त) वञ्चना प्रतीत होती है और करुण (विप्रलम्भ) में करुणता के कारण विशेष रूप से निषिद्ध की गयी वञ्चना कही गयी है।। अथ सम्भोगः स्पर्शनालिङ्गनादीनामानुकूल्यान्निषेवणम् ।।२२० ।। घटते यत्र यूनोर्यत् स सम्भोगश्चतुर्विधः । (ख) सम्भोग शृङ्गार- युवकों (नायक और नायिका) की अनुकूलता के कारण स्पर्श, आलिङ्गन इत्यादि का उपभोग जिसमें घटित होता है, वह सम्भोग शृङ्गार कहलाता है। वह चार प्रकार का होता है।।२२०उ.-२२१पू.॥ __ अत्रायमर्थः- प्रागसङ्गतयोः सङ्गतवियुक्तयोर्वा नायिकानायकयोः परस्परसमागमे प्रागुत्पन्ना तदानीन्तना वा रतिः प्रेप्सितालिङ्गनादीनां प्राप्तौ सत्यामुपजायमानैर्हषादिभिः संसृज्यमाना चन्द्रोदयादिभिरुद्दीपिता स्मितादिभिर्व्यज्यमाना प्राप्तप्रकर्षा सम्भोगशृङ्गार इत्याख्यायते। स च वक्ष्यमाणक्रमेण चतुर्विधः। यहाँ इसका यह अर्थ है- पहले न मिले हुए अथवा मिलकर विलग हुए नायिका और नायक का परस्पर मिलन होने पर पूर्व में उत्पन्न अथवा उस समय वाली रति, अभीष्ट आलिङ्गन इत्यादि के प्राप्त होने पर उत्पन्न हर्ष इत्यादि के द्वारा संसृज्यमान (वृद्धि को प्राप्त) चन्द्रोदय इत्यादि द्वारा उद्दीपित, स्मित (मुस्कान) इत्यादि द्वारा अभिव्यञ्जित (होकर) प्रकर्ष को प्राप्त होने पर सम्भोग शृङ्गार कहलाती है। वह नीचे कहे गये क्रम के अनुसार चार प्रकार की होती है। संक्षिप्त सङ्कीर्णः सम्पन्नतरः समृद्धिमानिति ते ।।२२१।। पूर्वानुरागमानप्रवासकरुणानुसम्भवा क्रमतः । सम्भोग शृङ्गार के भेद- सम्भोग शृङ्गार चार प्रकार का होता है- १. संक्षिप्त २. सङ्कीर्ण ३. सम्पन्नतर और ४. समृद्धिमान् । ये क्रमश: पूर्वानुराग, मान, प्रवास और करुण से उत्पन्न होते है।।२२१उ.-२२२प.॥ तत्र संक्षिप्त: युवानो यत्र संक्षिप्तान् साध्वसवीडितादिभिः ।। २२२।। उपचारान् निषेवन्ते स संक्षिप्त इतीरितः । (१) संक्षिप्त सम्भोगशृङ्गार- युवक (नायिका और नायक) भय और लज्जा इत्यादि के कारण जिसमें शिष्टता का सेवन (आचरण) करते हैं, वह संक्षिप्त सम्भोग शृङ्गार कहलाता है।।२२२उ.-२२३पू.।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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