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________________ द्वितीयो विलासः असहिष्णुत्वमेव स्याद् दृष्टेरनुमितेः श्रुतेः । ईर्ष्यामाने तु निर्वेदावहित्थाग्लानिदीनता ।। २०४ ।। चिन्ता चापल्यजडतामौनाद्या व्यभिचारिणः । [ २५७ ] हेतुज मान- प्रियतम के दूसरी (नायिका) के प्रति आसक्त होने पर उत्पन्न ईर्ष्या हेतुज मान कहलाती है। इसमें देखने, अनुमान करने अथवा सुनने से असहिष्णुता होती है। ईर्ष्यामान में निर्वेद, अवहित्था, ग्लानि, दीनता, चिन्ता, चपलता, जड़ता, मौन इत्यादि व्यभिचारी भाव होते हैं ।। २०२उ. - २०५पू.।। तत्र दर्शनर्ष्यामानो यथा (गाथासप्तशत्याम् ९.३२)पच्चक्खमन्तुकारअ ! जइ चुम्बसि मह इमे हदकवोले । ता मज्झ पिअसहीए विसेसओ कीस तष्णाओ ।।446 ।। (प्रत्यक्षमन्तुकारक! यदि चुम्बसि ममेमौ हतकपोलौ । ततो मम प्रियसख्या विशेषकः कस्मादाद्रः ।।) दर्शन से ईर्ष्यामान जैसे (गाथा सप्तशती ९.३२ में ) - हे प्रत्यक्ष अपराधी (प्रत्यक्ष अपराध करने वाले) ! जब तुम मेरे इन अभागे गालों को चूमते हो तो मेरी प्रियसखी का गाल कैसे गीला करोगे ।।446 ।। विमर्श - तात्पर्य यह है कि ईर्ष्यामान हेतुज होता है और वह अपने प्रिय को अन्य नायिका के प्रति अनुरक्त हुआ जानकर ईर्ष्या के कारण होता है। यह केवल स्त्रियों में होता है। प्रिय की किसी अन्य नायिका में आसक्ति को या तो प्रत्यक्ष रूप से देख कर या अनुमान करके अथवा विश्वस्त सखी द्वारा सुन कर यह मान होता है। अत्र नायिकाकपोलचुम्बनव्याजेन तत्प्रतिबिम्बितां सखीं चुम्बति नायके तदीर्ष्यया जनितो नायिकामान: प्रत्यक्षमन्तुकारकेत्यनया सम्बुद्ध्या व्यज्यते । यहाँ नायिका के गालों के चूमने के बहाने से उसमें प्रतिबिम्बित ( उस नायिका की) सहेली का चुम्बन लेते हुए (नायक) के प्रति उसकी ईर्ष्या से उत्पन्न नायिका का मान 'प्रत्यक्ष अपराध करने वाले' इस सम्बोधन से व्यक्त हो रहा है। भोगाङ्कगोत्रस्खलनोत्स्वप्नैरनुमितिस्त्रिधा ।। २०५।। अनुमिति के भेद - अनुमिति तीन प्रकार की होती है- (१) भोगाङ्क से २. गोत्रस्खलन से ३. उत्स्वप्न से ॥ २०५ ॥ विमर्श - १. सम्भोग के चिह्नों को देखकर अनुमान के द्वारा अन्यासक्ति - समझने से भोगाङ्क अनुमिति होता है । २. गोत्रस्खलन (बातचीत में भूल से अन्य नायिका का नाम ले लेने) से अनुमान द्वारा अन्यासक्ति जान लेने के कारण उत्पन्न मान गोत्रस्खलन मान होता
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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