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________________ द्वितीयो विलासः धावन्त्यन्तरसंस्तुतानपि जनान् कण्ठे ग्रहीतुं मनः काष्ठा तस्य ममेदृशी यदुकुले कुल्यः कथं जीवति ।।415 ।। अत्र यदुकुलध्वंसेन नारदस्य शोकः परगत विभावों से मध्यम का शोक जैसे आक्रन्दन से जड़ हुए प्राण लेने वाले ( यमदूतों) द्वारा मानो (शरीर) के अङ्ग टुकड़ेटुकड़े किये जा रहे हैं, कण्ठ में गर्व के कारण रुके हुए ऑसू के निकलने से वाणी की गति अस्पष्ट हो रही है, अन्तःकरण से अप्रशंसित (अपरिचित) व्यक्ति को भी गले लगाने के लिए मन दौड़ रहा है। जब मेरी यदुकुल (के विनष्ट हो जाने पर इस प्रकार की काष्ठा ( व्याकुलता ) है तो उस (यदुकुल) के परिवार ( सम्बन्धी) जन कैसे जी रहे हैं ।। 415 ।। यहाँ यदुकुल के विनष्ट हो जाने से नारद का शोक हैं। हेतुभिः स्वगतैरेव प्रायः स्त्रीनीचयोरयम् । मरणव्यवसायान्तस्तत्र भूपरिवेष्टनम् । उरस्ताडननिर्भेदपातोच्चैरोदनादयः ।। १४४।। ।। १४५।। [ २२९ ] नीच व्यक्ति तथा स्त्री का शोक स्वगत अनुभावों के कारण मृत्यु- निर्धारण तक रहने वाला शोक प्राय: स्त्री और नीच व्यक्ति में होता है। उसमें भूमि पर लोटना, छाती पीटना, निर्भेदन, गिरना, ऊँची आवाज में रोना इत्यादि विक्रियाएँ होती हैं । । १४४उ.-१४५।। तत्र नीचगतो यथा करुणाकन्दलेकचैरर्धच्छिन्नैः करनिहंतिरक्त कुचतटैर्नखोत्कृत्तैर्गण्डैरुपलहतिशीर्णैश्च निटिलैः । विदीर्णैराक्रन्दाद् विकलगदितैः कण्ठविवरैर्मनस्तक्ष्णोत्यन्तःपुरपरिजनानां स्थितिरियम् ।।416 ।। नीचगत विभाव से शोक जैसे करुणाकन्दल में अन्तःपुर (रनिवास) के सेवकों की यह स्थिति थी कि वे आधे बिखरे बालों, हाथों द्वारा पीटे गये स्तनतटों (चुचुकों), नख से नोचे गये गालों, पत्थर से मारे गये मस्तक, खुली हुई रूलाई के कारण व्याकुल ध्वनि वाले कण्ठविवरों से अपने को शान्त करते थे ।। 416 ।। स्त्रीगतो यथा (कुमारसम्भवे ४/४) अथ सा पुनरेव विह्वला वसुधालिङ्गनधूसरस्तनी । विललाप विकीर्ण - मूर्धजा समदुःखामिव कुर्वती स्थलीम् ।।417।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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