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________________ [ xxiii ] पुत्तलिका नृत्य का प्रयोग किया जाता था। डा. पिशेल महोदय के मतानुसार पुत्तलिका नृत्य से ही नाट्योत्पत्ति हुई। संस्कृत नाट्यों का सञ्चालक सूत्रधार होता है उसी प्रकार पुत्तलिका नृत्यके सूत्र का सञ्चालक सूत्रधार होता है । यहीं सूत्रधार द्वारा नाट्यों और पुत्तालिका नृत्यों के सञ्चालकत्व की समानता ही पुत्तलिका नृत्य से नाट्योत्पत्ति का प्रमुख आधार है । नाट्य रस, भाव, अभिनय कला इत्यादि से सुसज्जित होता है। किन्तु पुत्तलिका नृत्य में रसादि का अभाव तथा चेतनाशून्यता होती है, इसलिए पुत्तलिका नृत्य से नाट्योत्पत्ति की कल्पना सर्वथा अविवेकपूर्ण है, छायावाद - छाया से नाट्य की उत्पत्ति होने के मत के प्रवर्तक डा. लूडर्स और कोनो महोदय हैं। डा० लूडर्स के अनुसार यवनिका के भीतर उपस्थित छाया के माध्यम से कथावस्तु का प्रदर्शन होता है। यह कला नाट्योत्पत्ति के पूर्व में प्रचलित थी । कालान्तर में इसी से नाट्य की उत्पत्ति हुई । डा० कीथ महोदय के अनुसार यह सिद्धान्त महाभाष्य के अयथार्थ - अवधारणा पर आधारित है किन्तु शास्त्रग्रन्थों में ऐसे रूपकों का निर्देश नहीं है। अत एव ऐसा अनुमान है कि छाया-नाटकों का आविर्भाव नाट्योत्पत्ति से बाद में हुआ । वीरपूजावाद - डा. पिशेल महोदय के अनुसार कृष्ण की पूजा से नाट्य की उत्पत्ति हुई। उनका मानना है कि नाट्य की उत्पत्ति मृतपुरुषों के प्रति सम्मान प्रदर्शन की भावना से हुई। नाट्य ही सभी धर्मो का स्रोत है । ऐतिहासिक पुरुषों के पराक्रम और गुणों को चिरस्मरणीय रखने के लिए नाट्योद्भव हुआ। एकदेशीय होने के कारण यह मत अन्य विद्वानों द्वारा समर्थित नहीं हुआ। नाट्य मानवजीवन की सुखात्मक और दुःखात्मक भावनाओं से परिपूर्ण होता है। इसके अतिरिक्त शिव, राम, कृष्ण इत्यादि भक्तों की दृष्टि में महान् और अमर देव हैं। अत एव उनके प्रि मृतात्मा होने की कल्पना हास्यास्पद है। प्रकृतिपरिवर्तनवाद - कीथ के अनुसार समयानुसार प्रकृति में हुए परिवर्तन को भावात्मक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नाट्य की उत्पत्ति हुई । इस सिद्धान्त की पुष्टि के लिए महाभाष्य में निर्दिष्ट कंसवध नाटक का उल्लेख किया है। इस नाटक में प्रकृति का भावात्मक रूप स्पष्ट करते हुए यह प्रतिपादित किया गया है कि काले वस्त्र पहनने वाले कंस के ऊपर लाल वस्त्र पहनने वाले कृष्ण का विजय हेमन्त के ऊपर ग्रीष्म के विजय का सङ्केत है। यह भी मत संस्कृत नाट्योत्पत्ति के विषय के अनुकूल नहीं है। मेपेलनृत्यवाद - पाश्चात्य कतिपय विद्वानों ने मेपोल नृत्य और इन्द्रध्वज महोत्सव के साम्य के विषय में यूनानी नाटक इन्द्रध्वजमहोत्सव से भारतीय नाटक की उत्पत्ति की
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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