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________________ [xxii] और वहीं कौबेररम्भातिसार नामक नाटक करने का भी उल्लेख प्राप्त होता है जिसमें प्रसन्न हुई दैत्यपत्नियों ने अपने आभूषणों को पुरस्कार स्वरूप दे दिया था। पाणिनि की अष्टाध्यायी में कृशाश्व के नटसूत्रों का उल्लेख किया गया है-'पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षनटसूत्रयोः', कर्मन्दकृशाश्वादिनिः (पा.अ. 4.3.110-111) । पातञ्जल्यमहाभाष्य में भी महर्षि पतञ्जलि ने कंसवध और बलिंबन्धन नामक दो नाटकों का उल्लेख किया है'इह तु कथं वर्तमानकालता कंसं घातयति.......प्रत्यक्षं च बलिं बन्धयन्तीति' (म.भा. 3.1.26) अर्थात् जब कंस पहले ही मर चुका है और बलि का बन्धन अतीत काल में हो चुका है तो ये नट कैसे वर्तमान काल में प्रत्यक्ष रूप से कंस को मारते हैं अथवा बलि को बाँधते हैं। ___इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्कृत नाट्य का मूलबीज वेदों में उपलब्ध है। इसका क्रमिक विकास इतिहास, पुराण, रामायण, महाभारत काल में भी होता रहा, जिसकी अक्षुण्ण परम्परा भास से लेकर आज तक विद्यमान है। संस्कृत के नाटककारों में कालिदास, भवभूति और शूद्रक प्रमुख हैं। इनमें कालिदास का अभिज्ञानशाकुन्तल सर्वोत्कृष्ट है- काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला'। नाट्योत्पत्ति-विषयक वाद भारतीय परम्परा के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा नाट्य का उपदेश किया गया। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न ब्रह्मा ने सार्ववर्णिक पञ्चमवेद के रूप में विकट सङ्कटकाल में भी मानवों को शान्ति प्रदान करने वाले सर्वजनग्राह्य नाट्य की कल्पना किया। इस भारतीय परम्परावाद का विवेचन पहले किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न आधारों पर नाट्योत्पत्ति की कल्पना किया है जिनका संक्षेप इस प्रकार है संवादसूक्तवाद- पाश्चात्य विद्वान् ओल्डेनवर्ग के अनुसार ऋग्वेद में उपलब्ध संवादसूक्त ही संस्कृत के नाट्यों की उत्पत्ति के मूलस्रोत हैं। अपने मत की पुष्टि में उन्होंने कालिदास द्वारा प्राणीत विक्रमोर्वशीय का उल्लेख किया है जो ऋग्वेद के पुरुरवा-उर्वशी संवाद पर आधारित है। मैक्समूलर सिल्वा लेवी और वान् श्रोडर ने इस सिद्धान्त को परिपुष्ट भी किया है। 'ऋग्वेद के संवादसूक्तों से नाट्योत्पत्ति हुई यह मत तर्क-सङ्गत नहीं है क्योंकि नाट्यों के संवादों में वाचिक इत्यादि अभिनय द्वारा संवाद भावपूर्ण हो जाता है किन्तु वैदिकसंवादों में भावमय भाषा का अभाव है। अत एव यह मत नितान्त भ्रामक है। केवल इतना ही कहा जा सकता है कि नाट्योत्पत्ति के विषय में ऋग्वेद का आंशिक सहयोग है। पुत्तलिकानृत्यवाद- प्राचीन काल में भारत में लोगों के मनोरञ्जन के लिए
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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