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________________ द्वितीयो विलासः [ १८५] सर्वावस्थास्वहरपि कथं मन्दमन्दातपं स्यात् । इत्थं चेतश्चटुलनयने दुर्लभं प्रार्थनं मे गाढोष्माभिः कृतमशरणं त्वद्वियोगव्यथाभिः ।।331 ।। अभीष्ट वियोग से उत्सुकता जैसे (मेघदूत २.४५) लम्बे पहरों वाली रात एक क्षण की तरह कैसे छोटी हो जाय? तथा दिन भी सभी अवस्थाओं में (सभी ऋतुओं में) किस तरह मंद-संताप वाला हो जाय? हे चञ्चलनेत्र वाली! इस प्रकार दुर्लभ अभिलाषा करने वाला मेरा मन अत्यधिक जलन भरी तुम्हारे वियोग की वेदनाओं से असहाय कर दिया गया है।।331।। विमर्श- विरहियों के लिए रात बड़ी भयानक तथा कष्टदायिनी होती है। अत: वे चाहते हैं कि यदि रात क्षण भर की हो जाय तो किसी तरह जीवन-रक्षा हो सके। विरही का हृदय वियोग की धधकती ज्वाला से जलता रहता है। उस पर यदि दिन की गर्मी शरीर को झुलसाती रहे तो मर्मान्तक पीड़ा होती है। अत: यक्ष सभी ऋतुओं में दिन को कम गर्मी वाला होने की अभिलाषा करता है। इष्टवस्तुदर्शनाद् यथा (अमरुशतके ६६) आयाते दयिते मनोरथशतैर्नीत्वा कथञ्चिद्दिनं वैवग्ध्यापगमाज्जडे परिजने दीर्घा. कथां कुर्वति । दष्टास्मीत्यभिधाय सत्वरतरं व्याधूय चेलाञ्चलं तन्वङ्ग्या रतिकातरेण मनसा दीपोऽपि निर्वापितः ।।332।। अभीष्ट दर्शन से उत्सुकता जैसे (अमरुशतक ६६ में ) (विरहोपरान्त संगमोत्कंठिता नायिका का वर्णन सखी सखी से कर रही है)- प्रिय के विदेश से लौटकर आ जाने पर उसने मिलन-विषयक विविध अभिलाषाओं में दिन तो जैसे तैसे काट लिया किन्तु (संध्याकाल मिलने में) मूर्ख रसहीन सखियों ने जो बातों का सिलसिला जारी किया तो उसे द्रोपदी का चीर ही बना डाला। यह देखकर रति के लिए व्याकुल मन वाली उस तन्वंगी ने 'डस लिया डस लिया' कहकर झटके से कूदकर अपने चीनांशुक को झाड़ने के बहाने दीपक बुझा दिया।।332।। रम्यादिदक्षया यथा कृतावशेषेण सविभ्रमेण निष्कीलितेनाध्वनि पूरितेन । प्रसाधनेनाच्युद्दर्शनाय पुरस्त्रियः शिश्रियिरे गवाक्षान् ।।333।। रमणीय वस्तु दर्शन की इच्छा से उत्सुकता जैसे उतावलेपन (स्थिरता न होने) के कारण रास्ते में पूरा होने वाले अधूरे प्रसाधन (शृङ्गार) से युक्त नगर की स्त्रियों ने अच्युत (भगवान्) को देखने के लिए घर की खिड़कियों का आश्रय लिया।।333 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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