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________________ [१६२] रसार्णवसुधाकरः यथा (वेणीसंहारे ६.१८)- . स कीचकनिषूदनो बकहिडिम्बकिम्मीरहा मदान्धमगधाधिपद्विरदसन्धिबन्धाशनिः । गदापरिघमानिना भुजबलेन सम्मानितः प्रियस्तस्य ममानुजोऽर्जुनगुरुर्गतोऽस्तं किल ।।278 ।। जैसे (वेणीसंहार ६/१८ में) (युधिष्ठिर द्रौपदी से कहते हैं- हे द्रौपदी!) कीचक को मारने वाला, बकासुर, हिडिम्बासुर तथा किमीरासुर का वध करने वाला, परिध के सदृश गदा से शोभायमान, अद्वितीय बाहुबल से सम्मानित वह तुम्हारा प्रिय, मेरा छोटा भाई, अर्जुन का ज्येष्ठ भ्राता अस्त को प्राप्त हो गया है-ऐसा प्रवाद है।।278।। शात्रवात् चेष्टा स्युः शात्रवावेगे वर्मशस्त्रादिधारणम् ।।४१।। रथवाजिगजारोहसहसापक्रमादयः । (८) शत्रुव्यसन से आवेग- शत्रुव्यसन आवेग में कवच, शस्त्र इत्यादि को धारण करना, रथ, अश्व, हाथी पर आरोहण, सहसा पलायन इत्यादि चेष्टाएँ होती है।।४१उ.४२पू.॥ यथा (कृष्णकर्णामृते २.७१) रामो नाम बभूव हुं तदबला सीतेति हुं तां गुरोर्वाचा पञ्चवटीवने विहरतस्तस्याहरद् रावणः । कृष्णेनेति पुरातनी निजकथामाकर्ण्य मात्रेरितां सौमित्रे! क्व धनुर्धनुर्धनुरिति व्यग्रा गिरः पान्तु वः ।।279 ।। जैसे (कृष्णकर्णामृत २.७१ में) राम नाम वाले (राजा हुए), सीता इस नाम वाली उनकी पत्नी थी, पिता की आज्ञा से पञ्चवटी वन में विचरण करते हुए उनकी उस (पत्नी) को रावण ने हर लिया। माता के द्वारा कही गयी अपनी इस कथा को सुन कर कृष्ण के द्वारा कही गयी "लक्ष्मण! धनुष धनुष धनुष कहाँ है" यह व्यग्र वाणी तुम लोगों की रक्षा करें।।279।। एते स्युरुत्तमादीनामनुभावा यथोचितम् ।।४२।। ये उत्तम इत्यादि नायकों के यथोचित अनुभाव हैं।।४२उ.।। अथोन्मादः उन्मादश्चित्तविभ्रान्तिर्वियोगादिष्टानाशतः ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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