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________________ द्वितीयो विलासः मुख और नेत्र का सिकोड़ना, सीत्कार- ये श्रम से उत्पन्न अनुभाव हैं । । १४-१५।। अध्वना यथा (बालरामायणे ६/३४)सद्यः पुरीपरिसरेऽपि शिरीशमृद्वी सीता जवात् त्रिचतुराणि पदानि गत्वा । गन्तव्यमद्य कियदित्यसकृद् ब्रुवाणा रामाश्रुणः कृतवती प्रथमावतारम् ।।244।। मार्ग चलने से श्रम जैसे (बालरामायण ६.३४ में) शिरीश के फूल के समान कोमल सीता नगर के परिसर में ही तीन-चार कदम चल कर तुरन्त बार - बार पूछने लगी की आज अभी और कितनी दूर जाना है (ऐसा सुनकर ) पहली बार राम के आँसू गिरने लगे । । 2441 नृत्तेन यथा स्वेदक्लेदितकङ्कणां भुजलतां कृत्वा मृदङ्गाश्रयां चेटिहस्तसमर्पितैकचरणा मञ्जीरसन्धित्सया । सा भूयः स्तनकम्पसूचितरयं निःश्वासमामुञ्चती रङ्गस्थानमनङ्गसात्कृतवती तालावधौ तस्थुषी ।। 245 ।। नृत्य से श्रम जैसे- पसीने से आर्द्र कङ्गनों वाली भुजा रूपी लताओं को मृदङ्ग (की ध्वनि) पर आश्रित करके, नुपूर (घुघुरु की ध्वनि) की मेल से चेटी के हाथों में एक पैर को समर्पित कर देने वाली, पुनः स्तनों के कम्पन से सूचित वेग वाले निःश्वास (लंबी लंबी साँस) को छोड़ती हुई वह नृत्यांगना रंगमंच को काममय बनाती हुई करतल (की ध्वनि) के समय स्थिर हो गयी ।।245।। रत्या यथा ममैव रसा. १३ नितान्तसुरतक्लान्तां चेलान्तकृतवीजनाम् । कान्तां लुलितनेत्रान्तां कलये कलभाषिणीम् ।।246।। रति से श्रम जैसे शिङ्ग भूपाल का ही सुरत (के श्रम) से थकी हुई, कपड़े (साड़ी) के एक छोर (पल्लू) से हवा करती हुई, चञ्चल नेत्रप्रान्त वाली तथा मधुर बोलने वाली प्रिया के प्रति मैं आसक्त हूँ ( या आदर करता 1124611 [ १४७ ] अथ मद: - मदस्त्वानन्दसम्मोहसम्भेदो मदिराकृतः । स त्रिधा तरुणो मध्योऽपकृष्टश्चेति भेदतः ।।१६।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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