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________________ [१४६] रसार्णवसुधाकरः तृष्णा से ग्लानि जैसे कम जलाशयों वाला विन्ध्य का रास्ता है। वहाँ प्यासी सीता जब मूर्छित हो जाती है तब उसी समय रामचन्द्र के व्याकुल हो जाने पर लक्ष्मण मालुधानी (नामक वनस्पति) के पत्तों के दोने वाले कलशों के साथ खाली (जल से रहित) जलपात्र को हाथ में पकड़े हुए आये।।241 ।। व्यायामेन यथा (शिशुपालवधे ७/६६) अतनुकुचभरानतेन भूयः क्लमजनितानतिना शरीरकेण । अनुचितगतिसादनिस्सहत्वं कलभकरोरुभिरूरुभिर्दधानैः ।।242।। व्यायाम से ग्लानि जैसे (शिशुपालवध ७/६६में) विस्तृत स्तनों के भार से झुकने, थकान से उत्पत्र अनत (झुकाव विहीन) सुकोमल शरीर तथा हाथी के बच्चे की सूड़ के समान (भारी) जङ्घाओं को धारण करने के कारण अभ्यासरहित गति (गमन) को नहीं सहन कर सकीं।।242। सुरतेन यथा अतिप्रयत्नेन नितान्ततान्ता . कान्तेन तल्पादवरोपिता सा । आलम्ब्य तस्यैव करं करेण ज्योत्स्नाकृतानन्दमलिन्दमाप ।।243 ।। सुरत से ग्लानि जैसे (सुरतक्रिया के पश्चात् ) अत्यन्त थकी हुई वह (नायिका) प्रियतम के द्वारा अत्यधिक प्रयत्नपूर्वक शय्या से उतारी (उठायी) गयी और उस (प्रियतम) के ही हाथों का (अपने) हाथों से सहारा लेकर चाँदनी के द्वारा आनन्दमय बनाये गये बरामदे को प्राप्त किया अर्थात् बरामदे में ले जायी गयी।।243 ।। अथ श्रमः श्रमो मानसखेदः स्यादध्वनृत्तरतादिभिः । अङ्गमर्दननिश्वासौ पादसंवाहनं तथा ।।१४।। जृम्भणं मन्दयानं च मुखनेत्रविकूणनम् । सीत्कृतिश्चेति विज्ञेया अनुभावाः श्रमोद्भवाः ।।१५।। (५) श्रम- मार्ग चलने, नृत्य, रति इत्यादि के कारण मन का अवसाद (थकान) श्रम कहलाता है। अङ्ग की मालिश, नि:श्वास, पैर का दबाना, जंभाई लेना, धीरे-धीरे चलना,
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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