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________________ | १२६] रसार्णवसुधाकरः जैसे ये मरने की शङ्का के कारण युद्ध की भीषणता से विरत (अलग) हो गये हों।।197।। यहाँ मरने की शङ्का के कारण निष्पकम्प (स्थिरता) द्योतित होने से स्तम्भ है। अमर्षाद् यथा आलोक्य दुःशासनमग्रतोऽपि प्रवृद्धरोषातिभरान्धचेताः । भीमः क्षणं शून्य इवावतस्थे चित्तं निरुन्धे हि महान् विकारः ।।198।। अत्र दुश्शासनविलोकनप्रवृद्धेनामोत्कर्षेण भीमस्यात्मविस्मरणकथनादयममर्चेण स्तम्भः। अमर्ष से स्तम्भ जैसे दुःशासन को सामने देख कर बढ़े हुए रोष के कारण अन्धकार-युक्त चित्त वाले भीम क्षण भर के लिए शून्य के समान (निश्चल) हो गये और मन को रोक लिया क्योंकि (उनमें) महान् विकार (उत्पत्र) हो गया।।198 ।। यहाँ दःशासन के देखने से बढ़े हए अमर्ष के उत्कर्ष से भीम के आत्मविस्मरण का कथन होने के कारण यह अमर्ष से स्तम्भ है। विषादाद् यथा यदत्र चिन्ताततिपाशजालैर्मुकुन्दगन्धद्विरदो बबन्धे । तेनारविन्दोदरमन्दिराया दशां तनुः स्तम्भमयीमवाप ।।199।। अत्र पुरुषोत्तममानवाप्तिजनितेन विषादेन लक्ष्याः स्तम्भः। विषाद से स्तम्भ जैसे यहाँ जो चिन्ता की सन्तान (समूह) रूपी पाशजाल के द्वारा विष्णु रूपी मतवाली हाथी बंध गया उस कारण से कमल का उदर (अन्तर्भाग) है घर जिसका ऐसी (लक्ष्मी) का शरीर जड़ता युक्त दशा को प्राप्त हो गया ।।199।। यहाँ पुरुषोत्तम (विष्णु) के मान प्राप्त होने से उत्पन्न विषाद के कारण लक्ष्मी का स्तम्भ है। अद्भुताद् यथा (रघुवंशे १५/६६) तद्गीतश्रवणैकाग्रा संसदश्रुमुखी बभौ । हिमनिष्यन्दिनी प्रातर्निर्वातेव वनस्थली ।।200।। अत्र कुशलवगीतमाधुर्यातिशयेन श्रवणैकाप्रतारूपविस्मयेन स्तम्भः। अद्भुत से स्तम्भ जैसे (रघुवंश १५.६६ में) - सारी सभा मौन होकर उनका गीत सुनती जा रही थी और सीता-स्मरण से आँखों से आँसू बहाती जा रही थी। उस समय वह सभा प्रातःकाल की उस वनस्थली के समान दिखाई देने
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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