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________________ [ १२०] रसार्णवसुधाकरः करने को सम्फेट कहा जाता है।।२८५उ.।। यथा (रघुवंशे ७/५२) अन्योन्यसूतोन्मथनादभूतां तावेव सूतौ रथिनौ च कौचित् । व्यश्वौ गदाव्यायतसम्प्रहारौ भग्नायुधौ बाहुर्विमर्दनिष्ठौ ।।195 ।। जैसे (रघुवंश ७.५२ में) कोई दो योद्धा अपने दो सारथियों के मारे जाने पर स्वयं रथ को हाँकते हुए युद्ध करने लगे पर जब उनके घोड़े भी कट गये तब वे योद्धा गदा युद्ध करने लगे, बाद में गदा के भी टूट जाने पर मल्ल युद्ध करने लगे।।195।। आसां च मध्ये वृत्तिनां शब्दवृत्तीस्तु भारती । तिस्रोऽर्थवृत्तयः शेषास्तच्चतस्रो हि वृत्तयः ।। २८६।। इन वृत्तियों में भारती वृत्ति शब्दवृत्ति होती है। इसके अतिरिक्त शेष (कैशिकी, सात्वती और आरभटी) तीन वृत्तियाँ अर्थवृत्तियाँ हैं। इस प्रकार चार वृत्तियाँ होती है।।२८६।। अन्योऽन्यमिश्रणादासां वृत्तिं च पञ्चमीम् । अशेषरससामान्यां मन्यते लक्षयन्ति च ।। २८७।। सभी रसों के लिए सामान्य इन वृत्तियों में एक दूसरे के मिश्रण के कारण पञ्चम वृत्ति मानी जाती है और लक्षण भी किया जाता है।।२८७।। यथा (शृङ्गारप्रकाशे) 'यत्रारभट्यादिगणा: समस्ताः मिश्रत्वमाश्रित्य मिथः प्रथन्ते । मिश्रेति तां वृत्तिमुशन्ति धीराः साधारणी वृत्तिचतुष्टयस्य ॥इति।। जैसा कि शृङ्गारप्रकाश में कहा गया है जहाँ आरभटी इत्यादि (वृत्तियों) के सभी गुण परस्पर मिश्रित होकर विस्तार को प्राप्त होते हैं चारों वृत्तियों में साधारण उस (वृत्ति) को आचार्य लोग मिश्रा वृत्ति कहते हैं। तन्नविचारसहम् । कुतः तत् किं वृत्तिधर्माणां मिश्रणमैकरूपेण, न्यूनाधिकभावेन वा। न प्रथमः, अवैषम्येन मिश्रणाभावात्। तथा मिश्रणे तु मिश्रवृत्तिव्यङ्गो रसोऽपि मिश्रो न्यूनाधिकः प्रसज्येत। वृत्तीनां च रसविशेषनियमस्य वक्ष्यमाणत्वात्। ननु मिश्रा वृत्तिः सर्वरससाधरणीति चेद् । न। भारतीप्रभृतीनां नियतविषयत्वात्। मूलप्रमाणाभावेन स्वोक्तिमात्रत्वाच्च।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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