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________________ प्रथमो विलासः [ ११९ कर्णस्यापि रथं विदार्य कणशो विद्राव्य चान्यद्बलं त्वत्पुत्रो भयविद्रवत्कुरुपते! पन्थानमन्वेत्ययम् ।।193 ।। अत्र कुरुबलानां भयविभ्रान्तिकथनादवपातनम् । जैसे (धनञ्जयविजय ६७में) शान्तनुपुत्र (भीष्म पितामह) और कुरुगुरु (द्रोणाचार्य) के सारथी को मार कर द्रोणपुत्र (अश्वत्थामा) की धनुष की डोरी (प्रत्यञ्चा) को काट कर, कृपाचार्य को मूर्च्छित करके, कर्ण के रथ को तोड़कर और छोटी-छोटी टुकड़ियों में बटे अन्य सैनिकों को खदेड़ कर हे कुरुपति (धृतराष्ट्र)! तुम्हारा यह पुत्र (दुर्योधन) रास्ते में आ रहा है।।193 ।। यहाँ कौरव सैनिकों में भय के कारण हड़बड़ी मचने का कथन होने से अवपातन है। अथ वस्तूत्थापनम्___ तद्वस्तूत्थापनं यत्तु वस्तु मायोपकल्पितम् । (इ) वस्तूस्थापन- माया द्वारा संरचित (उपस्थापित) वस्तु वस्तुस्थापन कहलाती है।।२८५पू.।। यथा मायाचुञ्चरथेन्द्रजिद्गणमुखे खड्गेन दीनाननां सौमित्रे द्रुतमार्यपुत्र चकितां मां पाहि पाहीति च । क्रोशन्तीं व्यथिताशयां हनुमता मा मेति सन्तर्जितः कण्ठे कैतवमैथिली कुपितधीश्चिच्छेद तुच्छाशयः ।।194।। अत्र निकुम्भिलायामभिचारं चिकीर्षुणेन्द्रजिता राघवादिबुद्धिप्रमोषार्थमाया• कल्पितमैथिलीकण्ठखण्डनं कृतमिति वस्तूत्थापनम् । । जैसे हनुमान के द्वारा ‘मत मत' (मारो)- इस प्रकार डाटे जाते हुए कुपित बुद्धिवाले तथा तुच्छ आशय वाले माया में प्रख्यात इन्द्रजित (मेघनाद) ने खड्ग से भयभीत, 'हे लक्ष्मण! हे आर्यपुत्र (राम)! मेरी रक्षा करो रक्षा करो' इस प्रकार कहती हुई, थरथराती हुई और भय से चिल्लाती हुई माया के द्वारा बनायी गयी सीता को कण्ठ (गले) गले से काट दिया।।194 ।। यहाँ नीच कार्यों के प्रति जादू के मन्त्रों के प्रयोग करने की इच्छा वाले मेघनाद द्वारा राम इत्यादि की बुद्धि को भ्रमित करने के लिए माया द्वारा बनायी गयी सीता के गले का खण्डन किया- यह वस्तूत्थापन है। अथ सम्फेट:__ सम्फेटः स्यात्समाधातः कृतसंरम्भयोईयोः ।।२८५।। (ई) सम्फेट- युद्ध करने वाले दो (व्यक्तियों) का (एक दूसरे पर आघात (प्रहार)
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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