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प्रथमो विलासः
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ऐसा आरोप करने वाली तुम्हारी बुद्धि को नमस्कार है। इस पर नायिका को क्रोध आ गया और उसके कपोल लाल हो उठे। तब नायक ने उसके चरणों की ओर दृष्टि डाल कर अपनी प्रणति सूचित कर दी इस प्रकार गुरुजनों के बीच में भी दोनों ने समयोचित कोप और प्रसादन विधि का परित्याग नहीं किया।।179।।
यहाँ नायक के व्याकुलतापूर्वक मुस्कराने और नायिका के सिर हिलाने की चेष्टा द्वारा प्रियापराधनिर्भेद होने से नर्म है।
शुद्धहास्यजमप्युक्तं तद्वदेव त्रिधा बुधैः ।। २७४।।
२. शुद्ध हास्यज- शुद्ध हास्यज (नर्म) भी तीन प्रकार का कहा गया है- वाणी द्वारा, वेष द्वारा तथा चेष्टा द्वारा ।।२७४उ.।।
तत्र वाचा शुद्धहास्यजं यथा (दशरूपके उद्धृतम् २२५)
अर्चिष्मन्ति विदार्य वक्रकुहराण्यासृक्वतो वासुकेस्तर्जन्या विषकर्बुकान् गणयतः संस्पृश्य दन्ताङ्कुरान् । एकं त्रीणि नवाष्टसप्त षडिति व्यत्यस्तसङ्ख्याक्रमा
वाचः कौञ्चरिपोः शिशुत्वविकलाः श्रेयांसि पुष्णन्तु वः ।।180 ।।
वाणी द्वारा शुद्धहास्यज जैसे (दशरूपक में उद्धृत २०२ बाण की सूक्ति मुक्तावली से)
(यहाँ बालक कार्तिकेय की बाललीला का स्वाभाविक असम्बद्ध प्रलाप वर्णित है)
'वासुकि के प्रकाशमय मुख-छिद्रों को ओष्ठ के कोनों से फाड़कर, विष के कारण रंगबिरंगे दाँतो के अङ्कुरों को अङ्गुलि से छूकर एक, तीन, नौ, आठ, सात, छह, इस प्रकार संख्या के क्रम से रहित गिनते हुए, क्रौञ्च के शत्रु कार्तिकेय की शिशुता के कारण टूटी-फूटी बातें तुम्हारे कल्याण की वृद्धि करें।।180।।
वेषण शुद्धहास्यजं यथा (बालरामायणे २.१)
स्नायुन्यासनिबद्धकीकसतनुं नृत्यन्तमालोक्य मां चामुण्डाकरतालकुट्टितलयं वृत्ते विवाहोत्सवे । ह्रीमुद्रामपनुद्य यद् विहसितं देव्याः समं शम्भुना
तेनाद्यापि मयि प्रभुः स जगतामास्ते प्रसादोन्मुखः ।1181 ।। अत्र भृङ्गिरिटिवेषेण शिवयोर्हसिताविर्भावाच्छुद्धहास्यजम् । वेष द्वारा शुद्ध हास्यज जैसे- (बालरामायण २.१ में)
विवाह के अवसर पर स्नायु-बहुल हड्डियों के मेरे शरीर पर लगे रहते हुए मुझे नाचते हुए देख कर जिस नाच में चामुण्डा करताल दे रही थी, (अर्थात ताली बजा रही थी) देवी पार्वती