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________________ [ १०८] रसार्णवसुधाकरः . चेष्टा द्वारा सम्भोमेच्छा प्रकटन से जैसे (सूर्यास्त से पहले) सूर्य के प्रकाश में ही पति को पकड़ कर (पति के) न चाहने पर भी हँसते हुए उसके पैरों को हँसती हुई पत्नी धोने लगी ।।174।।। अत्र सूर्यास्तमयात् प्रागेव चरणप्रक्षालनलक्षणया क्रिययानिष्क्रमणनिवारणजानितेन हासेन सम्भोगेच्छाप्रकटनान्नम। ... यहाँ सूर्यास्त से पहले ही चरण धोने रूपी क्रिया से (घर से) बाहर जाने से रोकने के कारण उत्पन्न हास के द्वारा सम्भोगेच्छा प्रकटित करने से नर्म है। अनुरागप्रकाशोऽपि भोगेच्छानर्मवत् त्रिधा ।। २७३।। अनुरागप्रकटन अनुराग का प्रकाशन भी संभोगेच्छा नर्म के समान तीन प्रकार का होता है-। (वाणी द्वारा, वेष द्वारा तथा चेष्टा द्वारा)॥२७३उ.।। वाचानुरागनिवेदनाद् यथा (मालतीमाधवे ७.१) वयं तथा नाम यथात्थ किं वदा । म्ययं त्वकस्मात् कलुषः कथान्तरे । कदम्बगोलाकृतिमाश्रितः कथं विशुद्धमुग्धः कुलकन्यकाजनः ।।175।। अत्र लवङ्गिकया विशुद्धमुग्धः कुलकन्यकाजनः इति परिहासेन मदयन्तिकानुरागनिवेदनान्नर्म। वाणी द्वारा अनुराग निवेदन से जैसे (मालतीमाधव ७.१में) (लवङ्गिका मुस्करा कर मदयन्तिका से कहती है-) आप जैसा कहती हैं, हम वैसे ही हैं। किन्तु क्या कहूँ? विशुद्ध और मूढ इस कुमारी ने किस कारण से पुरुष-विषयक वार्तालाप के बीच में ही विह्वल होकर कदम्ब पुष्प के सदृशं आकार का आश्रय लिया ।।175 ।। यहाँ लवङ्गिका के द्वारा 'विशुद्धमुग्धः कुलकन्यकाजन' इस परिहास से मदयन्तिका के अनुराग का निवेदन करने से नर्म है। वेषेणानुरागनिवेदनाद् यथा (रलावल्याम् १.२) औत्सुक्येन कृतत्वरा सहभुवा व्यावर्तमाना ह्रिया तैस्तैर्बन्धुवधूजनस्य वचनैर्नीताभिमुख्यं पुनः । दृष्टवाग्रे वरमात्तसाध्वसरसा गौरी नवे सङ्गमे संरोहत्पुलका हरेण हसता श्लिष्टा शिवायास्तु वः ।।176।। अत्र पुलकरोमहर्षणलक्षणवेषजनितेन शिवस्य हसनेन गौरीहृदयानुरागस्य प्रकाशनान्नर्म।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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