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________________ | १०६। रसार्णवसुधाकरः परिवर्तक है। अथ कैशिकी नृत्तगीतविलासादिमृदुशृङ्गारचेष्टितैः समन्विता भवेवृत्तिः कैशिकी श्लक्ष्णभूषणा ।। २६८।। ३. कौशिकी वृत्ति- कैशिकी वृत्ति नृत्त, गीत, मनोरञ्जन (विलास) इत्यादि के कारण कोमल शृङ्गार की चेष्टा से युक्त सुकुमार शोभा वाली होती है।।२६८।। __ अङ्गान्यस्यास्तु चत्वारि नर्म तत्पूर्वका इमे । स्फञ्जस्फोटौ च गर्भश्चेत्येषां लक्षणमुच्यते ।। २६९।। कैशिकी वृत्ति के अङ्ग- इसके चार अङ्ग होते हैं- १. नर्म, २. नर्मस्फञ्ज, ३. नर्मस्फोट और ४. नर्मगर्भ। इनका लक्षण कहा जा रहा है।।२६९॥ तत्र नर्म शृङ्गाररसभूयिष्ठः प्रियचित्तानुरञ्जकः । अग्राम्यः परिहासस्तु नर्म स्यात् तत् त्रिधा मतम् ।। २७०।। शृङ्गारहास्यजं शुद्धहास्यजं भयहास्यजम् । १. नर्म- शृङ्गार रस की प्रचुरता वाला और प्रिय के चित्त को प्रसन्न करने वाला शिष्ट (अग्राम्य) परिहास नर्म कहलाता है। वह तीन प्रकार का कहा गया है- (अ) शृङ्गारहास्यज (आ) शुद्धहास्यज तथा (इ) भयहास्यज ॥२७०-२७१पू.।। शृङ्गारहास्यजं नर्म त्रिविधं परिकीर्तितम् ।। २७१।। सम्भोगेच्छाप्रकटनादनुरागनिवेदनात् । तथा कृतापराधस्य प्रियस्य प्रतिभेदनात् ।। २७२।। (अ) शृङ्गारहास्यज- शृङ्गारहास्यज नर्म तीन प्रकार का कहा गया है- सम्भोगेच्छा प्रकटन से, अनुराग निवेदन से तथा प्रियापराधनिभेद (प्रियतम द्वारा किये गये अपराध को प्रकट करने) से ॥२७१उ.-२७२पू.।। सम्भोगेच्छाप्रकटनं त्रिधा वाग्वेषचेष्टितैः । सम्भोगेच्छाप्रकटन- सम्भोगेच्छाप्रकटन तीन प्रकार से होता है- वाणी द्वारा, वेष द्वारा तथा चेष्टा द्वारा।।२७३॥ तत्र वाचा सम्भोगेच्छाप्रकटनाद् यथा (काव्यप्रकाशे उद्धृतम् १२६) गच्छाम्यच्युत दर्शनेन भवतः किं तृप्तिरुत्पद्यते किन्त्वेवं विजनस्थयोर्हतजनः सम्भावत्यन्यथा । इत्यामन्त्रणभङ्गिसूचितवृथावस्थानखेदालसा
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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