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________________ [१०२] रसार्णवसुधाकरः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद से क्रमश: भारती इत्यादि (भारती, सात्वती, कैशिकी तथा अरभटी) उत्पन्न हुई-ऐसा अन्य आचार्य कहते हैं।।२६०।। तत्र भारती प्रयुक्तत्वेन भरतैर्भारतीति निगद्यते । प्रस्तावनोपयोगित्वात् साङ्गं तत्रैव लक्ष्यते ।। २६१।। १. भारती वृत्ति- आचार्य भरत के द्वारा प्रयुक्त किये जाने के कारण (यह) भारती (वृत्ति) कहलाती है। प्रस्तावना के लिए उपयोगी होने के कारण वहीं (प्रस्तावना के विवेचन के समय तृतीय विलास में) अङ्गों-सहित उसका लक्षण दिया जाएगा।।२६१॥ अथ सात्त्वती सात्विकेन गुणेनापि त्यागशैर्यादिना युता । हर्षप्रधाना सन्त्यक्तशोकभावा च या भवेत् ।।२६२।। सात्वती नाम सा वृत्तिः प्रोक्ता लक्षणकोविदः । २. सात्त्वती वृत्ति- जो त्याग, शौर्य आदि सात्त्विक गुणों से युक्त, हर्ष की प्रधानता वाली तथा शोकभाव से रहित होती है, वह लक्षणविज्ञों द्वारा सात्त्वती नाम वाली (वृत्ति) कही गयी है।।२६२-२६३पू.॥ अङ्गान्यस्यास्तु चत्वारि संल्लापोत्थापकावपि ।। २६३।। सङ्घात्य परिवर्तश्चेत्येषां लक्षणमुच्यते । सात्त्वती वृत्ति के अङ्ग- - इस (वृत्ति) के चार अङ्ग होते है- १. संल्लाप, २. उत्थापक, ३. सङ्घात्य और ४. परिवर्तक। इनका लक्षण कहा जा रहा है।।२६३उ.-२६४पू.।। (अथ संल्लापः) ईर्ष्याक्रोधादिर्भाव रसैवीराद्धतादिभिः ।। २६४।। परस्परं गभीरोक्तिः संल्लाप इति शब्द्यते । १. संल्लाप- वीर, अद्भुत इत्यादि रसों वाला और ईा, क्रोध इत्यादि भावों से युक्त परस्पर गम्भीरोक्ति संल्लाप कहलाता है।।२६४उ.-२६५पू.॥ यथानघराघवे (५.४४-४५)रामः बन्दीकृत्य जगद्विजित्वरभुजस्तम्भौघदुस्सञ्चरं रक्षोराजमपि त्वया विदधता सन्ध्यासमाधिव्रतम् । प्रत्यक्षीकृतकार्तवीर्यचरितामुन्मुच्य रेवां समं
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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