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________________ प्रथमो विलासः अन्य रसों के आलम्बनों का निरूपण अत्यावश्यक न होने के कारण पृथग्रूप से तथा इस प्रकरण की उपयोगिता न होने से उन रसों के वर्णन के प्रसङ्ग में उनके आलम्बनों का निरूपण करेंगे। ।।इति नायिकाप्रकरणम्।। ।इस प्रकार नायिका प्रकरण समाप्त।। अथ शृङ्गारसस्योद्दीपनविभावः- - उद्दीपनं चतुर्धा स्यादालम्बनसमाश्रयम् । गुणचेष्टालङ्कृतयस्तटस्थाश्चेति भेदतः ।।१६२।। शृङ्गार रस के उद्दीपन विभाव- आलम्बन के समाश्रित (शृङ्गार रस के ) उद्दीपन (विभाव)- १. गुण, २. चेष्टा, ३. अलङ्कृति तथा ४. तटस्था भेद से चार प्रकार के होते हैं।।१६२॥ तत्र गुणाः यौवनं रूपलावण्ये सौन्दर्यमभिरूपता ।। मार्दवं सौकुमार्य चेत्यालम्बनगता गुणाः ।।१६३।। १. गुण- १. यौवन, २. रूप ३. लावण्य ४. सौन्दर्य ५. अभिरूपता ६. मार्दव ७. सौकुमार्य- ये आलम्बन के गुण हैं।।१६३।। तत्र यौवनमः सर्वासामपि नारीणां यौवनं तु चतुर्विधम् । प्रतियौवनमेतासां चेष्टितानि पृथक्-पृथक् ।।१६४।। १. यौवन- सभी स्त्रियों में चार प्रकार का यौवन होता है- ((अ) प्रथम यौवन, (आ) द्वितीय यौवन (इ) तृतीय यौवन तथा (ई) चतुर्थ यौवन)। प्रत्येक यौवन में इन स्त्रियों की चेष्टाएँ अलग-अलग होती है।।१६४॥ तत्र प्रथम-यौवनम् ईषच्चपलनेत्रान्तं स्मरस्मेरमुखाम्बुजम् । सगर्वजरजोगण्डमसमग्रारुणाधरम् ।।१६५।। लावण्योद्धेदरम्याङ्गं विलसद्भावसौरभम् । उन्मीलिताकुरकुचमस्फुटाङ्गसन्धिकम् ।।१६६।। प्रथमं यौवनं तत्र वर्तमाना मृगेक्षणा ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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