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________________ रसार्णवसुधाकरः वाले नायक ने ) हम लोगों को धोखा दिया हैं। (अब) यहाँ रहने से क्या लाभ? मुझे अपने घर ले चलो अथवा वहाँ भी चलने से क्या लाभ? इस प्रकार वधू व्यथित हो गयी । 169 || अथ स्वाधीनपतिका [ ५२ ] स्वायत्तामासन्नदयिता हृष्टा स्वाधीनवल्लभा । अस्यास्तु चेष्टा कथिता स्मरपूजामहोत्सवः ।। १५० ।। पानकेलिजलक्रीडाकुसुमापचयादयः 1 यथा ममैव सलीलं धम्मिल्ले दरहसितकह्लाररचनां कपोले सोत्कम्पं मृगमदमयं पत्रतिलकम् । कुचाभोगे कुर्वन् ललितमकरीं कुङ्कुममयीं युवा धन्यः सोऽयं मदयति च नित्यं प्रियतमाम् 1170 || (८) स्वाधीनपतिका - अधीन रहने वाले पति के (अपने समीप में) होने पर जो प्रसन्न रहती है, वह स्वाधीनपतिका (स्वाधीनवल्लभा) कहलाती है। कामदेव की पूजा का महोत्सव मनाना, पानक्रीडा, जलक्रीडा, पुष्पचयन आदि इसकी चेष्टाएँ होती है। । १५० - १५१पू.।। जैसे शिङ्गभूपाल का ही लीलापूर्वक जूडे में अलग करने वाली विकसित श्वेतकमल के रचना को, गालों पर कस्तूरी से पत्र - तिलक को तथा स्तनों की परिधि पर कुङ्कुम से सुन्दर भ्रमरी को बनाता हुआ वह यह युवक धन्य है जो ( इन कार्यों से ) प्रतिदिन (अपनी ) प्रियतमा को आमोदित (आनन्दित, करता है । 170 11 उत्तमा मध्यमा नीचेत्यवं सर्वास्त्रियः त्रिधा ।। १५१ ।। नायिकाओं के उत्तमादिभेद- उत्तमा, मध्यमा तथा नीचा भेद से (पूर्वोक्त) सर्भ नायिकाएँ तीन-तीन प्रकार की होती हैं ।। १५१उ. ।। तत्रोत्तमा अभिजातैर्भोगतृप्तै गुणिभिर्या च काम्यते । गृहणाति कारणे कोपमनुनीता प्रसीदति ।। १५२ । । विदधत्यप्रियं पत्यौ स्वयमाचरति प्रियम् । वल्लभे सापराधेऽपि तूष्णीं तिष्ठति सोत्तमा ।। १५३ । । उत्तमा नायिकाएँ- सम्भोग (विषय) से सन्तृप्त कुलीन गुणवान् लोगों द्वार जिसकी कामना की जाती हैं।, जो कारण उत्पन्न होने पर क्रोधित हो जाती हैं और प्रार्थन ( मनावन) करने पर प्रसन्न हो जाती हैं, जो पति के प्रति प्रिय धारण करती हैं, स्वयं (पति वे
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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